ग़ज़ल
वो मंजिल पर आकर पता पूछते हैं ।
मेरे अहले दिल की रजा पूछते हैं ।।
नसीहत जफ़ाओं की जो दे गए थे ।
सरे बज्म हमसे वफ़ा पूछते हैं ।।
लिखी जिसने दर्दे सितम की इबारत ।
मेरे आसुओं से ख़ता पूछते हैं ।।
किया जब भी तारीफ मैंने किसी की ।
मुहब्बत का हर वास्ता पूछते हैं ।।
हुई जब से हासिल उन्हें मिलकियत है।
जमाने से कीमत अता पूछते हैं ।।
खुदा जाने क्या फैसला देंगे हाकिम ।
गुनाहों की हमसे दफ़ा पूछते हैं ।।
जलाने की हसरत लिए मेरे कातिल ।
हरे जख़्म की दास्ता पूछते है ।।
खिंजा में है पत्तो ने क्यूँ साथ छोड़ा ।
ये हाल ए शजर फ़ाख़्ता पूछते हैं ।।
बड़ी शोख नजरे अजब की हिमाकत ।
हैं दिल में मगर रास्ता पूछते हैं ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी
पूछना ही इनकी फितरत है. अति सुंदर.
उत्तम ग़ज़ल !