गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : तुम चाहो तो मैं ना भी कहूँ

तुम चाहो तो मैं कह दूँ आज, तुम चाहो तो मैं ना भी कहूँ ,
इन झुकती आँखों के सारे राज़, तुम चाहो तो मैं ना भी कहूँ।

जो करे तुम्हारी तारीफें वो लफ्ज़ ढूंढकर लाया हूँ
ग़ज़लों में पिरोया हैं इनको, तुम चाहो तो मैं ना भी कहूँ ।

ईलू ईलू का मतलब टीचर से पूछकर आया हूँ
हाथों में लिए ये लाल गुलाब, तुम चाहो तो मैं ना भी कहूँ।

जो तुमने चाहा तो था पर डर डर के लिख न पायी तुम
उन सारे खतों का जवाब, तुम चाहो तो मैं ना भी कहूँ।

वो बचपन की सारी मस्ती, जो साथ चलायी थी कश्ती ,
मुझे वो सब कुछ है याद, तुम चाहो तो मैं ना भी कहूँ।

जब दिन में देखे थे सपने, रातों में नींद ना आई थी
उन सारी रातों का हिसाब , तुम चाहो तो मैं ना भी कहूँ।

वो बातें जो मुँह तक आ कर यू-टर्न मार फिर जाती हैं
वो सब बातें मैं कह दूं आज, तुम चाहो तो मैं ना भी कहूँ।

कह दूँ तुमसें गर सारी बात तो मन कुछ हल्का हो जाए
गर हो तुम्हारा समय ख़राब, तुम चाहो तो मैं ना भी कहूँ।

विजय कुमार गौत्तम 

विजय गौत्तम

नाम- विजय कुमार गौत्तम पिता का नाम - मोहन लाल गौत्तम पता - 268 केशव नगर कॉलोनी , बजरिया , सवाई माधोपुर , राजस्थान pin code - 322001 फोन - 9785523446 ईमेल - [email protected] व्यवसाय - मैंने अपनी Engineering की पढाई Arya college , Kukas , jaipur से Civil engineering में पूरी की है एवं पिछले 2 सालों से Jaipur Engineering College , Kukas , jaipur में व्याख्याता के पर कार्यरत हूँ । ग़ज़लें लिखना बहुत अच्छा लगता है ।