“दोहा मुक्तक”
चिंतन यू होता नहीं, बिन चिंता की आह
बैठ शिला पर सोचती, कितनी आहत राह
निर्झरणी बस में नहीं, कमल पुष्प अकुलाय
कोलाहल से दूर हो, ढूढ़ रही चित थाह॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
चिंतन यू होता नहीं, बिन चिंता की आह
बैठ शिला पर सोचती, कितनी आहत राह
निर्झरणी बस में नहीं, कमल पुष्प अकुलाय
कोलाहल से दूर हो, ढूढ़ रही चित थाह॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
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बहुत बढ़िया.
सादर धन्यवाद आदरणीया लीला तिवानी जी, आभार