राजनीति

जलते पहाड़, दोषी कौन?

देश के पहाड़ जल रह हैं, चाहे वह उत्तराखंड हो या फिर शिमला या फिर जम्मू काश्मीर के। पहाड़ों में लगी आग ने काफी विकराल रूप धारणकर लिया है। आज पूरे भारत में पहाड़ों में लगी भयंकर आग चर्चा का विषय बन गयी है। लोगों को विश्वास ही नहीं हो पारहा है कि आखिरकार पहाड़ के जंगलों में इतनी भयंकर आग आखिर लग कैसे गयी है। यह आग प्राकृतिक रूप से इतना विकराल आकार कैसे ले सकती है। ंजितने मुंह उतनी बाते ंहो रही हैं। राजनैतिक गलियारे में उत्तराखंड के पहाडों की आग को सियासत की साजिश कहा जा रहा है तो स्थानीय लोगों का तो यहां तक कहना है कि इस भयानक आग में लकड़ी व वनस्पतियों की तस्करी करने वाले बड़े गिरोहों का हाथ हो सकता है या फिर असामाजिक तत्वों की भी गहरी साजिश के खेल का हिस्सा भी यह आग हो सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पर्वतीय क्षेत्रों में इस बार बारिश न होने की वजह से आग ने विकराल रूप धारण किया है। यह भी कहा जा रहा है कि जब पहाड़ों पर भीषण गर्मी पड़ती है तब जंगलों में पेड़ों व अन्य पौधों आदि की पत्तियों के आपस में टकराने से जो रगड़ पैदा होती है उससे भी आग लगने की संभावना बलवती रहती है।

पहाडों के जंगलों में आग हर गर्मियों में लगा करती है। लेकिन इस बार जिस प्रकार से इंद्रधनुषी आकार में आग लगी है वह हर किसी को चैंका रही है तथा वह पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों को सोचने के लिए मजबूर अवश्य कर रही हैं। चर्चा तो यहा तक है कि यह जलवायु परिवर्तन के विकृत स्वरूप का एक भयावह उदाहरण है। उत्तराखंड के पहाड़ों की आग को केदरानाथ की आपदा के समकक्ष माना जा रहा है। उत्तराखंड के जंगलो में लगी आग के कारण 13 जिलों व 1500 गांवों की आबादी सीधे प्रभावित हो रही हैं। उत्तराखंड की आग में अब तक सात लोग कालकलवित हो चुके हैं तथा इस अग्निकांड के चलते कई जंगली पशु -पक्षी भी अपने जीवन से हाथ धो बैठे हैं। 89 दिनों से भी अधिक समय बीत चुका है लेकिन अभी तक आग का कोहराम कम नहीं हो सका है हालांकि केंद्रीय गृहमंत्रालय अपने आपदा प्रबंधन टीम के द्वारा चलाये जा रहे राहत कार्यों के बाद दावा किया जा रहा है कि अब आग पर कुछ सीमा तक नियंत्रण पाया जा चुका है।

उत्तराखंड की आग ने इस बार इतना अधिक विकराल रूप धारण कर लिया कि इसकी तपिश राजधानी दिल्ली में भी सुनायी दी है। पहली बार जंगलों में लगी आग पर काबू पाने के लिए केंद्रीय गृहमंत्रालय में उच्चस्तरीय बैठक हुयी और केंद्र सरकार ने एनडीआरएफ की टीमों को जंगलों में लगी आग को बुझाने के काम में लगाया गया। उत्तराखंड के जंगलों में लगी भयानक आग को बुझाने के लिए पहली बार तीन हजार लीटर टैंक की क्षमता वाले हेलीकाप्टरों से पानी का छिड़काव किया जा रहा है। साथ ही विभिन्न विभागों, पुलिस और अर्धसैनिक बलों के 15 हजार से अधिक कर्मचारी पहाड़ों के जंगलों की आग को बुझाने में लगे हुये है। आग इतनी भीषण है कि प्रतिदिन इसका दायरा बढ़ता ही जा रहा है।

पहाड़ के जंगलों में लगी इस आग के चलते भारी आर्थिक, सामाजिक व पर्यावरणीय दृष्टिकोण से काफी नुकसान हो रहा है। इस आग के कारण प्रभावित नागरिकों व पशु-पक्षियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ने की पड़ने की प्रबल संभावना व्यक्त की जा रही है। साथ ही साथ जंगलों में मौजूद प्राकृतिक वनस्पतियों व जड़ी-बूटियों के खात्मे का संकट पैदा हो गया है जिसके कारण स्वदेशी आयुर्वेद को भविष्य में गहरे संकट का सामना करना पड़ सकता हैं। पहाड़ में पर्यटन पर गहरा असर पड़ रहा है। पहाड़ के किसानों पर वैसे भी समस्या रहती है लेकिन इस बार की आग ने पहाड़ के किसानों को अंदर तक हिलाकर रख दिया है। उत्तराखंड के पहाड़ की आग एक भयानक हादसा है जिसका गंभीर असर आने वाले दिनों में भी दिखलायी पड़ेगा। यदि इस बार बारिश के मौसम में भी सामान्य बारिश भी नहीं हुयी तो हालात और अधिक बिगड़ सकते हैं। पहाडों पर रहने वाले लोगों का जीवन यापन करना वैसे भी टेढ़ी खीर रहता है लेकिन इस बार की आग ने सबकुछ ध्वस्त कर दिया है। उत्तराखंड के पहाड़ी जंगलों में लगी आग एक भयानक प्राकृतिक आपदा ही मानी जायेगी। यह आग भविष्य में आने वाली विध्वंसक आपदाओं की चेतावनी दे रही है फिर चाहे वह प्राकृतिक हो या फिर मानवीय साजिश का हिस्सा। उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग की जांच के लिए पहली बार राज्य पुलिस सतर्क हुयी है और पूरे मामले की गहराई में जाने के लिए उत्तराखंड की पुलिस ने अब तक चार लोगों को हिरासत में लिया भी है।

पुलिस का मानना है कि पुलिस का मानना हे कि हो सकता है कि इस भयानक अग्निकांड के पीछे असामाजिक तत्वों ने जलती हुई बीड़ी, सिगरेट व कोई अन्य पदार्थ साजिशन छोड़ दिया हो और फिर यह आग विकराल रूप धारण करती चली गयी। सर्वाधिक चिंता का विषय यह है कि यह आग उत्तराखंड से फैलते हुये शिमला के जंगलों और कश्मीर तक पहुंच गयी है। यह जलवायु परिवर्तन का भयावह स्वरूप नहीं तो और क्या है तथा आम जन की भाषा में इस आग को प्रकृति की विनाशलीला भी कहा जा सकता है।

मृत्युंजय दीक्षित