राजनीति

देश के विश्वविद्यालयों में आखिर हो क्या रहा है ?

देशभर के विश्वविद्यालयों के जो वर्तमान हालात बनकर उभर रहे हैं वे बेहद चिंताजनक व दुर्भाग्यपूर्ण हैं। देशभर में आज छात्रों के भविष्य के साथ जमकर खिलवाड़ किया जा रहा है और उनका देश के राजनैतिक दल अपना स्वार्थसिद्ध करने के लिए दुरूपयोग कर रहे हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारत विरोधी जहरीली नारेबाजी की जाती है और जब कार्यवाही की जाती है तो उन देशद्रोहियों के समर्थन में पीएम मोदी विरोधी सभी दल आ जाते हैं। हैदराबाद विश्वविद्यालय में भी लगभग इसी प्रकार के प्रकरण के बीच रोहित नाम के एक छात्र की खुदकुशी को लेकर देशभर में राजनैतिक वातवारण को गर्मा दिया जाता है। हैदराबाद की घटना की आढ़ में सभी दलों ने दलित राजनीति के नाम पर अपनी-अपनी राजनैतिक रोटियां सेक डाली हैं। जेएनयू में आजादी-आजादी के नारे लगाने वाला कन्हैया कुमार टीवी मीडिया के कुछ हलकों का हीरो बन गया उसे इस प्रकार से उभारा गया कि मानो देश को नया केजरीवाल मिल गया हो। कन्हैया कुमार आज भी हैदराबाद की घटना को जीवंत रखे हुये है तथा किसी न किसी बहाने मुददे को गरमाये रखना चाहते हैं।
साथ ही कन्हैया कुमार के पीछे जिन दलों की राजनीति लगातार रसातल की ओर जा रही है वह दल कनहेया को एक हीरो की तरह अपना रहे हैं उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कन्हैया के रूप में उनकी कायापलट करने वाला कोई मिल गया है। अब उसी तर्ज पर देश के हर विश्वविद्यालय को रंगने की कोशिश की जा रही है। वहीं दूसरी ओर श्रीनगर में तो दूसरा ही नजारा देखने को मिल रहा है। वहां पर कन्हैया व रोहित को समर्थन देने के नाम पर पाक समर्थक अलगाववादी तत्व हावी होते जा रहे हंै। श्रीनगर स्थित एनआईटी में भारत विरोधी और भारतमाता की जय बोलने वाले लोगों के बीच एक सोची समझी साजिश के तहत गहरी लकीर खीच दी जाती है। वहां पर भारतमाता की जय बोलने वाले लोगों को सुरक्षा के नाम पर एक प्रकार से बंधक बना लिया जाता है वहीं श्रीनगर से पूरे भारत को शर्मसार करने वाली एक खबर और आती है कि श्रीनगर विश्विद्यालय के गेट पर पाकिस्तानी समर्थक तत्वों ने पाकिस्तानी झंडा फहरा दिया है लेकिन इस बात को लेकर भारत के देशद्रोही कुछ तथाकथित टी वी व सोशल मीडिया में इसको लेकर गर्मागर्म चर्चा नहीं होती। यह दुर्भाग्यपूर्ण हैं आज सोशल मीडिया व टी वी जगत में देशभक्ति का गहरा अभाव होता जा रहा है। आज भारत के तथाकथित टी वी चैनलों में भारत की नकारात्मक छवि पेश करनी की होड़ सी मच गयी है। जिन खबरों में सकारात्मकता का पुट होता है व देशभक्ति की छाप होती है उन्हें तत्काल टी वी चैनल विवादित बनाकर लपक लेते हैं और बहस शुरू करवा देते है। आज की तारीख में टी वी पर होने वाली अधिकांश बहसे झूठ पर आधारित हेाती है जिनका कोई जनाधार नहीं होता लेकिन देश के राजनैतिक दल व नेता उन्हीं के आधार पर राजनैतिक दल अपनी रूपरेखा तैयार कर रहे हैं।
अभी हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय एक बार फिर चर्चा में आ गया। दिल्ली विश्वविद्यालय की पुस्तक “ भारत का स्वतंत्रता संघर्ष े में भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह,चंदशेखर आजााद व सूर्यसेन को क्रांतिकारी आतंकवादी घोषित किया गया है तथा वह वहां के छात्रों को पढ़ाया भी जा रहा है। आज देश के अधिकांश विश्वविद्यालयों में वामपंथी विचारधारा के इतिहासकारों का बनाया पाठयक्रम ही पढ़ाया जा रहा है। जिसके कारण इस प्रकार की समस्यों पैदा हो रही हैं। इस समय देश में एक ऐसी सरकार मौजूद है जिसमें आशा की कुछ किरण बनी हुयी है कि अब इस तरह की ताकतों को सिरे से कुचला जायेगा। यह पूरा मामला संसद में भी उठा और शहीद-ए-आजम के परिवार ने भी केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति इरानी को पत्र लिखकर किताब से आतंकवाद शब्द हटाने की मांग भी की हैं वहीं दूसरी ओर मंत्रालय ने भी विश्वविद्यालय को पत्र लिखकर कार्यवाही करने को कहा है। इस विषय पर मंत्रालय की ओर से कुछ और अधिक किया भी नहीे जा सकता है क्योंकि यदि सरकार कुुछ और अधिक करती है तो विपक्ष सरकार पर यह आरेाप लगाने लग जायेगा कि सरकार विश्वविद्यालयों की स्वायत्ताा पर हस्तक्षेप कर रही है। इस पूरे प्रकरण में जहां कांग्रेस व भाजपा ने एक स्वर से घटना की निंदा की तथा कड़ी कार्यवाही की मांग की वहीं दूसरी ओर भाजपा ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए इस पूरे घटनाक्रम के लिए वामपंथी दलों को ही जिम्मेदार ठहरा दिया है। ज्ञातव्य है कि भारत का स्वतंत्रता संघर्ष नामक यह पुस्तक वामपंथी इतिहासकार विपिन चंद्र, मृदुला मुखर्जी, आदित्य मुखर्जी, के. एन. परिकर और सुचेता महाजन ने मिलकर लिखी है और जिसमें भगत सिंह का अध्याय विपिन चंद्र ने लिखा है। इन इतिहासकारों के समर्थन में वर्तमान में वामपंथंी बुद्धिजिवी एकजुट होकर अपने विचारों का प्रस्फुटन अपनी तथाकथित लेखनी व बयानबाजी से कर रहे है और तर्क दे रहे है ंकि आज के संदर्भ में आतंकवाद शब्द की परिभाषा बदल गयी है। निहायत बचकानी और मूर्खतापूर्ण है। यह भारत के महान वीर सपूतों का एक प्रकार से महान अपमान है। यही वमपंथियों की विकृत विचारधारा है। वामपंथी कभी भी भारत के नहीं हुये यहीं कारण है कि यहां की जनता ने भी वामपंथी दलों को सिरे से नकार दिया है। अब बचे खुचे वामपंथी अपनी आक्सीजन को बचाये रखने के लिये भारत विरोधी जुमलों व लेखों आदि का सहारा ले रहे हैं और अपनी नयी राजनैतिक पौध को पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं। वामपंथी दलों ने बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ मिलकर अपनी नैया को पार लगाने का साहस दिखाने का प्रयास किया है लेकिन वह कितने सफल हो पाये हैं यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। केरल के विधानसभा चुनावों में भी इस बार वामपंथी पहली बार बहुकोणीय मुकाबले में फसंते हुए दिखलायी पड़ रहे हैं। ऐसा हो सकता है कि पांच प्रांतों के विधानसभा चुनावों के बाद वामपंथी केवल त्रिपुरा तक ही सिमट कर रह जायें और राज्यसभा में भी चोर दरवाजे से संसद में पहुंचने की आंस लगभग समाप्त हो जाये। यही कारण है कि आज वामपंथी ओछी हरकतों में उतर आये है। चाहे वह जेएनयू में “आजादी- आजादी“ के नारे की गूंज हो या फिर क्रांतिकारियों को आतंकवादी बताने की बात सभी देशविरोधी ताकतों में वामपंथी सबसे आगे हैं।
अभी दों और विश्वविद्यालयों का मामला काफी तेजी से आगे बढ़ने वाला है जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया का अल्पसंख्यक दर्जा समाप्त होने संभावना बलवती होती जा रही है । इस मुददे को लेकर मुस्लिम संगठनों का रूख आक्रामक दिखलायी पड़ रहा है तथा मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले सभी राजनैतिक दल मुस्लिम संगठनों के पक्ष में खड़े दिखलायी पड़ रहे हैं।
वास्तव में आज देश के सभी उच्च शिक्षण संस्थान बेहद दयनीय अवस्था के दौर से गुजर रहे हैं। आज विश्वविद्यालयें में गंभीर पठन पाठन नहीं हो पा रहा है। नयी खोज विकसित नहीं हो पा रही है। शोधकार्य न के बराबर हो रहे हैं। आज केवल अपनी छात्र और शिक्षक राजनीति को चमकाने के लिए छात्रावासों के कमरों कों हथियाने का काम चल रहा है। पीएचडी करने के नाम पर लोग 15 साल तक कमरे पर कब्जा जमाकर अपनी राजनीति को चमका रहे हैं।
केवल केंद्रीय विश्विविद्यालय का व अल्पसंख्यक का दर्जा देने भर नाम से ही विश्वविद्यालयों व छात्रों का कायाकल्प नहीं होने जा रहा अपितु कम से कम मोदी सरकार में विश्वविद्यालयों का स्तर ऊंचा उठना चाहिये ताकि छात्रों का भविष्य अंधकारमय न होकर उज्जवल हो सके। हमारे विश्वविद्यालयों में आज राजनीति के नाम पर छात्रों को गुमराह किया जा रहा है व राजनैतिक दल उनका दुरूपयोग करके उनकें भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है। यह बंद होना चाहिये और विश्वविद्यालयों कें भी अच्छे दिन आने चाहिये।

— मृत्युंजय दीक्षित