सपने
मैं देखती हूँ जो सपने,
क्या ये होंगे कभी अपने,
दिल में बार बार ये सवाल उभरता है।
इस सवाल का जवाब क्या दूँ,
क्योंकि जानती हूँ मैं,
सपने टूट जाते है,
कभी होते नही अपने,
बंद पलको में सजते हैं,
टूट जाते हैं आँख खुलते,
मैं तो खुली आंखों से भी,
देखती हूँ सपने।
क्या करूँ मैं,
मुश्किल है बड़ा,
इन सपनों से निज़ात पाना,
कुसूर क्या है मेरा,
अगर आते हैं सपने,
रेज़ा रेज़ा बिखर जाउंगी,
होंगे नही गर ये अपने !
— सुमन शर्मा