तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा
देश के बड़े हिस्से में इस समय सूखे का कहर है. खेती की बात छोड़िये पीने के पानी की भी भारी किल्लत देश के कई हिस्सों में इस समय बनी हुई है. आज़ादी मिले 70 वर्ष होने के बाद भी हम सूखे और बाड़ जैसी समस्याओं से स्थायी निजात नहीं पा सके है. इसके पीछे बड़ा कारण हमारे राजनेताओं की संकुचित सोच और अक्षमता तथा नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार है. राजनेताओं की संकुचित सोच वर्तमान केन्द्रीय जलसंसाधन मंत्री उमा भारती के बयान से प्रकट होती है की सूखे से निपटने की योजना नहीं बनाई जा सकती. और नौकरशाही को सूखे से निपटने में कोई रूचि नहीं होती. उनकी दूर द्रष्टि तो बस सूखा पढने के बाद बटने वाली राहत राशि पर होती है.
भारत भर में वर्षा का अमूल्य जल बह कर नदियों के रास्ते समुंद्र में जा कर इस्तेमाल के योग्य नहीं रह जाता. इस अमूल्य वर्षा जल के संरक्षण के पर्याप्त उपाय करने में किसी राजनेता अथवा नौकरशाही की कोई रूचि नहीं है. राजनेता इतने अधिक पढ़े लिखे अथवा दूरगामी सोच के नहीं हैं और नौकरशाही अपने निजी स्वार्थ में जल संरक्षण के उपाय नहीं करना चाहते. देश में एकाध स्थान पर लोगों ने सूखे और पानी की कमी से निजात पायी है तो वो व्यक्ति विशेष के प्रयसों से ना की किसी नेता अथवा अधिकारी के प्रयासों से. बल्कि नेताओं और अधिकारीयों ने उनके प्रयासों में अड़ंगे ही लगाये हैं. इस अति गंभीर मुद्दे पर नेताओं और अधिकारीयों से कोई आशा करना व्यर्थ प्रतीत होता है. जन साधारण को स्वयं ही पानी का अपव्यय रोकना होगा और वर्षा जल संरक्षण के उपाय करने होंगे. अन्यथा कही गयी बात सही भी हो सकती है की तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा.