“कुण्डलिया छंद”
काँटों भरी न जिंदगी, काँटों भरा न ताज
माँ धीरज रख निकालूँ, पैरन तेरे आज
पैरन तेरे आज , कभी नत पीड़ा होगी
लूँ काँटों को साज, दुखों से दूर रहोगी
कह गौतम कविराय, उम्मीदों को न पाटों
भार गोद अकुलाय, डगर नहि बावों काँटों॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
सुंदर!!
धन्यवाद मित्र रमेश कुमार सिंह जी