कविता

“जिंदगी भी अजीब है”

दिन गुजर होता है

रात बसर होती है

सुबह शाम हँसती है

धूप में पिघलती है

बारीश में बरसती है

जिंदगी भी अजीब है

खुसर पुसर चलती है॥

अरमानों का जखीरा

गमों का पहाड़

खुशियों की बौछार

अपनों का दुलार

पायदानों में होती है

जिंदगी भी अजीब है

खुसर पुसर चलती है॥

तन्हाइयों का रेला

मिजाजों का झमेला

जबाबदारीयों का ठेला

चाहतों का मेला

रुक चौराहें पर ढोती है

जिंदगी भी अजीब है

खुसर पुसर चलती है॥

खुन्नस का बुखार

चेहरों का दीदार

आपसी ब्यवहार

उपजते तकरार

तंग गलियाँ पिरोती है

जिंदगी भी अजीब है

खुसर पुसर चलती है॥

उठा पटक कुस्ती

थक हार सुस्ती

चाहत की बस्ती

अहंकारों की हस्ती

कभी रोती है हँसती है

जिंदगी भी अजीब है

खुसर पुसर चलती है॥

लाभ-हानि,जीवन-मरण

अंत लाग प्रभु शरण

नित्य निकलती किरण

गरीबी के कई चरण

धूप छांव सहती है

जिंदगी भी अजीब है

खुसर पुसर चलती है॥

 

महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

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