“दोहा मुक्तक”
शीर्षक — पहाड़ / पर्वत / भूधर
गिरि से उतरती गंगा, कलकल करती धार
भूधर भूमि निहारता, जल ज़मीन का प्यार
हरियाली धरी बसुधा, तरु पल्लवित सुवास
मिल जाती है बेहिचक, सागर पानी खार॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
शीर्षक — पहाड़ / पर्वत / भूधर
गिरि से उतरती गंगा, कलकल करती धार
भूधर भूमि निहारता, जल ज़मीन का प्यार
हरियाली धरी बसुधा, तरु पल्लवित सुवास
मिल जाती है बेहिचक, सागर पानी खार॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
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सुंदर दोहा मुक्तक!!
धन्यवाद मित्रवर रमेश कुमार सिंह जी , हार्दिक आभार