कविता

पुश्तैनी घर

अब मैं पुश्तैनी घर कहा जाता हूँ ।
हाँ मैं तुम्हारे पुरखों को पनाह दिया करता था ।
अब तुम्हारी राह तकने का गुनाह किया करता हूँ ।
हाँ मैंने तुम्हारे पुरखों की किलकारियाँ भी सुनी हैं यहाँ ।
अब तुम्हारे बच्चों के आने की राह तकता हूँ ।।1।।

अब मैं पुश्तैनी घर कहा जाता हूँ ।
मेरे दरवाजों, दीवारों, गवाक्षों, दालानों, बरामदों, छज्जों में,
मेरे पिछवाड़े के छोटे मकानों, अगवाड़े के उद्यानों में,
तुम्हारे नन्हे बचपन की छुअन आज भी ताज़ी है ।
अब तुम्हारे एक धक्के से द्वार खुलने की आस रखता हूँ ।।2।।

अब मैं पुश्तैनी घर कहा जाता हूँ ।
मेरे संग संग वो आम, जामुन, अमरुद, अनार,
बरगद, पीपल, बेर, बेल, हरसिंगार, कचनार,
तुम्हारे नटखट विनोद आज भी बिसरा नहीं पाते ।
अब तुम्हारे बच्चों के संग खेलने की चाह रखता हूँ ।।3।।

अब मैं पुश्तैनी घर कहा जाता हूँ ।
जानता हूँ कि अब कोई जन्मोत्सव मनेगा नहीं यहाँ,
न कोई डोली उठेगी, न बारात सजेगी कभी,
मैंने तुम्हारे पुरखों की आखरी अर्थी को उठाया था ।
अब किसी को काँधा भी न दे पाने का सच समझता हूँ ।।4।।

अब मैं पुश्तैनी घर कहा जाता हूँ ।
तुम्हारी तरह उन दरख्तों के बाशिंदे परिंदे भी नहीं आया करते,
मर्कटों, चमगादड़ों, उलूकों, गिरगटों, सर्पों का आशियाना हूँ,
जो अपने अनादि होने का घमण्ड किया करता था ।
अब अकस्मात् अंत की आशंका से सहम जाता हूँ ।।5।।

अब मैं पुश्तैनी घर कहा जाता हूँ ।
हो चुका हूँ बूढ़ा मैं जानता हूँ अपना यह सच,
मेरे पड़ोसी की तरह किसी दिन मेरी भी मौत आएगी,
बिक जाऊँगा, मिट जाउँगा, तुम्हें धनवान बना जाउँगा,
एक विशाल इमारत को मेरी लाश पर सजा देख पाता हूँ ।।6।।

अब मैं पुश्तैनी घर कहा जाता हूँ ।
सोचता हूं मेरे बाद तुम्हारी संतति पुश्तैनी होना नहीं जान पाएगी,
उस इमारत में वो दम नहीं कि पुश्तैनी होने का भार सह पाएगी,
कब अचानक हवा के हल्के झोंके से मेरी ही लाश पर ढह जाएगी,
चलो सौभाग्यशाली हूँ पुश्तैनी होने का कर्ज चुका जाता हूँ ।।7।।

डॉ. शुभ्रता मिश्रा

डॉ. शुभ्रता मिश्रा वर्तमान में गोवा में हिन्दी के क्षेत्र में सक्रिय लेखन कार्य कर रही हैं । उनकी पुस्तक "भारतीय अंटार्कटिक संभारतंत्र" को राजभाषा विभाग के "राजीव गाँधी ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार-2012" से सम्मानित किया गया है । उनकी पुस्तक "धारा 370 मुक्त कश्मीर यथार्थ से स्वप्न की ओर" देश के प्रतिष्ठित वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है । इसके अलावा जे एम डी पब्लिकेशन (दिल्ली) द्वारा प्रकाशक एवं संपादक राघवेन्द्र ठाकुर के संपादन में प्रकाशनाधीन महिला रचनाकारों की महत्वपूर्ण पुस्तक "भारत की प्रतिभाशाली कवयित्रियाँ" और काव्य संग्रह "प्रेम काव्य सागर" में भी डॉ. शुभ्रता की कविताओं को शामिल किया गया है । मध्यप्रदेश हिन्दी प्रचार प्रसार परिषद् और जे एम डी पब्लिकेशन (दिल्ली)द्वारा संयुक्तरुप से डॉ. शुभ्रता मिश्राके साहित्यिक योगदान के लिए उनको नारी गौरव सम्मान प्रदान किया गया है। इसी वर्ष सुभांजलि प्रकाशन द्वारा डॉ. पुनीत बिसारिया एवम् विनोद पासी हंसकमल जी के संयुक्त संपादन में प्रकाशित पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न कलाम साहब को श्रद्धांजलिस्वरूप देश के 101 कवियों की कविताओं से सुसज्जित कविता संग्रह "कलाम को सलाम" में भी डॉ. शुभ्रता की कविताएँ शामिल हैं । साथ ही विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में डॉ. मिश्रा के हिन्दी लेख व कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं । डॉ शुभ्रता मिश्रा भारत के हिन्दीभाषी प्रदेश मध्यप्रदेश से हैं तथा प्रारम्भ से ही एक मेधावी शोधार्थी रहीं हैं । उन्होंने डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर से वनस्पतिशास्त्र में स्नातक (B.Sc.) व स्नातकोत्तर (M.Sc.) उपाधियाँ विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान के साथ प्राप्त की हैं । उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से वनस्पतिशास्त्र में डॉक्टरेट (Ph.D.) की उपाधि प्राप्त की है तथा पोस्ट डॉक्टोरल अनुसंधान कार्य भी किया है । वे अनेक शोधवृत्तियों एवम् पुरस्कारों से सम्मानित हैं । उन्हें उनके शोधकार्य के लिए "मध्यप्रदेश युवा वैज्ञानिक पुरस्कार" भी मिल चुका है । डॉ. मिश्रा की अँग्रेजी भाषा में वनस्पतिशास्त्र व पर्यावरणविज्ञान से संबंधित 15 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं ।

3 thoughts on “पुश्तैनी घर

    • डॉ शुभ्रता मिश्रा

      धन्यवाद

  • जानता हूँ कि अब कोई जन्मोत्सव मनेगा नहीं यहाँ,

    न कोई डोली उठेगी, न बारात सजेगी कभी,

    मैंने तुम्हारे पुरखों की आखरी अर्थी को उठाया था ।

    अब किसी को काँधा भी न दे पाने का सच समझता हूँ ।।4।। एक दुःख भरी सच्चाई !!!!!

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