मुक्तक
जिस मानव के मन के भीतर,घर कर जाती इच्छाएँ
पकड़ डोर उसके जीवन की, नाच नचाती इच्छाएँ
कभी बना देती अपराधी,करवाती अपराध कई
दिन का चैन रात की नींदें, सभी उड़ाती इच्छाएँ
रमा प्रवीर वर्मा …..
जिस मानव के मन के भीतर,घर कर जाती इच्छाएँ
पकड़ डोर उसके जीवन की, नाच नचाती इच्छाएँ
कभी बना देती अपराधी,करवाती अपराध कई
दिन का चैन रात की नींदें, सभी उड़ाती इच्छाएँ
रमा प्रवीर वर्मा …..
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सुन्दर मुक्तक
सुन्दर मुक्तक