रिश्ते
रिश्तों की परख वो क्या जाने
जो क्रोध की अग्नि में
रिश्तों को जला देते हैं
जिस प्रेम की शीतलता को
महसूस करना हो
मोम की तरह यूँ ही गला देते हैं
मत कहना किसी को अपना
गर नही निभा सकते
रिश्तों को आखिरी सांस तक
खुद को तो जलाते ही हैं
वजह बेवजह
दूसरे को भी अन्तरात्मा तक हिला देते हैं
बहुत आसान होता है कहना
मुझसे दूर चले जाओ
कभी नज़र न आओ
क्या किआ तुमने मेरे लिए
अब मुझपे इस अजनबी रिश्ते का
बोझ न बढ़ाओ
मगर इतना भी नही सोचते
क्या बीतेगी बेकसूर दिल पर
और यूँ ही बिन तेल के जला देते हैं
खून के रिश्तों ने तो
मार लिए तीर ऐ दोस्त
तभी शायद दिल के रिश्तों से भी
बेवफाई वाला सिला देते हैं
क्योंकि
रिश्तों की परख वो क्या जाने
जो क्रोध की अग्नि में
रिश्तों को जला देते हैं
रिश्तों पर बेमिसाल कविता !
Dhnyvaad maanyvar
Dhnyvaad maanyvar
वाह बहुत खूब!!
वाह बहुत खूब!!
शुक्रिया भाई
शुक्रिया भाई
रिश्तों की परख वो क्या जाने
जो क्रोध की अग्नि में
रिश्तों को जला देते हैं बहुत खूब .
धन्यवाद मित्र।