कविता : कृषक
क्यों न जाती सबकी राह तुम तक
क्यों न आती तेरी आह हम तक
सीचं सीचं कर धरती , जीवन तू जगाता है
बोलो न कृषक तू फिर क्यों यम-दीप जलाता है
माना आँखों पर सबके है कठोर तम छाया हुआ
प्रकृति के मनमानी का तुझ पर बड़वानल आया हुआ
रख हौसला तू अन्नदाता , है ! विष्णु जगपालक
न जला यम-दीप तू तो जीवन दीप जलाता है
आत्महन्ता भला जग में , कैसे कोई सुख पाता है
बोलो न कृषक तू फिर क्यों यम-दीप जलाता है ………
— नीरज वर्मा “नीर”
बहुत खूब, नीरज जी !
सुंदर सृजन!!