कविता : मासूमी
बेजुबान होते है
पत्थर
तराशा गया है
उन्हें
इस खूबी से
मासूमियत का
इजहार करते
बच्चे जब भूखे हो
दाने पानी को
मोहताज
मासूमियत
दिल चीर देती है
सत्य को नंगा कर
देती है
कलियुग है
यहाँ अहिल्या जैसा
कोई पाषाण
शिलाखण्ड
नहीं है
जिसे आशा
हो
किसी राम की
या किसी
भगवान की
हो उद्वार करें
आकर
पाषाण खण्ड से
भी बदतर है
भविष्य उनका
बचपन ही
भयावना है
खुशहाल कल की
कैसे सोचूँ
अब कुछ इतना
फटेहाल
जीर्णशीर्ण कि
मन में
विरक्ति उपजने
लगती है
— डॉ मधु त्रिवेदी
वाह !!