राष्ट्र का बल हमारी युवा पीढ़ी है : डा. अनिल आर्य
ओ३म्
–वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून में ग्रीष्मोत्सव का चतुर्थ दिवस-
वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून के ग्रीष्मोत्सव के चतुर्थ दिवस 14 मई 2016 का कार्यक्रम प्रातः 5.00 बजे योगाभ्यास व ध्यान साधना के प्रशिक्षण के साथ आरम्भ हुआ। इसके पश्चात प्रातः 6.30 बजे से अथर्ववेद पारायण यज्ञ हुआ। यज्ञ के बाद यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती जी द्वारा यज्ञ के यजमानों को आशीर्वाद दिया गया। यज्ञ प्रार्थना गीतकार पंडित सत्यपाल पथिक जी ने के साथ सभी धर्म प्रेमियों ने मिलकर की। इसके पश्चात कोलकत्ता से पधारे भजनोपदेशक कैलाश कर्मठ जी के भजन हुए। उनके भजन की एक पक्ति थी ‘भक्ति चिन्तन किया करो।’ कर्मठ जी के बाद आर्य विद्वान आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी का प्रवचन हुआ। उनके प्रवचन के शब्द हैं कि परमात्मा हमारे अन्दर विराजमान होकर हमारे सभी शुभ व अशुभ कर्मों के साक्षी हैं। अतः हमें सजग रहकर अपने अन्दर ही अन्दर परमात्मा से जुडे रहते हुए उसके मुख्य व निज नाम ओ३म् का उच्चारण कर उसका ध्यान करना चाहिये। उन्होंने कहा कि ऋषियों की धरा पर हमें मानव जन्म पाने का सौभाग्य मिला है। यह वह धरा है जहां जहां ऋषियों के अन्तःकरण में ईश्वर का ज्ञान वेद के रूप में हमें प्राप्त हुआ था। आचार्य जी ने यज्ञ के वैज्ञानिक महत्व व मनुष्यों के पर्यावरण विषयक कर्तव्यों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला। इसके बाद अगला कार्य आश्रम से 4 किलोमीटर दूरी पर पहाडों में स्थिति व वन के ऊंचे वृक्षों से आच्छादित तपोभूमि में हुआ जहां धर्मप्रेमी सज्जन आश्रम द्वारा प्रदत्त बस सुविधा, शोभायात्रा व अपने अपने वाहनों से पहुंचें। वहां एक वृहत सत्संग का आयोजन किया गया जिसमें भजन व प्रचचनों सहित कुछ समय ईश्वर का ध्यान भी कराया गया। आरम्भ में श्री रमेश चन्द्र स्नेही भजनोपदेशक ने श्रोताओं की मांग पर भजन ‘करता रहूं गुणगान प्रभु मुझे दो ऐसा वरदान, तेरा नाम ही रटते रटते इस तन से निकले प्राण’ गाया। इसके बाद श्री श्याम सुन्दर आहुजा जी ने एक कविता ‘सुख भी मुझे प्यारे हैं दुःख भी मुझे प्यारे हैं, छोडू मैं किसे दाता दोनों ही तुम्हारे हैं।’ प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन श्री शैलेश मुनि जी ने किया। उन्होंने सिकन्दर एवं एक भारतीय सन्यासी के मध्य संवाद की शिक्षाप्रद घटना को बहुत ही प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत किया। इसके बाद श्री उम्मेदसिंह विशारद जी ने एक भजन ‘संग्राम है जिन्दगी लड़ना इसे पड़ेगा, जो लड़ेगा नहीं वह आगे नहीं बढ़ेगा।’ प्रस्तुत किया। आचार्य उमेशचन्द कुलश्रेष्ठ जी ने प्रवचन किया और कहा कि परमात्मा ने वेद में गारण्टी दी है कि जो दानशील हैं उन पर परमात्मा अपने धन की वर्षा करता है। उन्होंने अपने प्रवचन में अनेक महत्ववपूर्ण बातें की और इस जन्म में किये जाने वाले शुभ कर्मों का इस जन्म व परजन्म में मिलने वाले लाभों का भी वर्णन किया। उन्होंने विस्तार से समीक्षा कर निर्दोष व मूक पशुओं की हत्या व मांसाहार को अमानवीय क्रूर कर्म बताया। अपने व्याख्यान के अन्त में उन्होंने कहा कि आर्यवसमाज का प्रत्येक व्यक्ति देवता है क्योंकि वह परोपकार के कार्य करने के साथ पीड़ितों के लिए लड़ता है। कार्यक्रम में श्रीमती राज सदाना ने भी अपनी स्वरचित कवितायें भी प्रस्तुत कीं।
पंडित सत्यपाल पथिक जी ने भजन प्रस्तुत करने से पहले वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून के संस्थापक बावा गुरमुख सिंह जी के विषय में अपनी कुछ स्मृतियों को श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए बताया कि उन्होंने बावा जी के दर्शन किये थे। वह सौम्य व्यक्ति थे। अमृतसर स्थित उनके घर में यज्ञशाला भी थी जहां प्रतिदिन यज्ञ होता था। वह स्वयं भी प्रतिदिन यज्ञ करते थे। श्री दौलत राम शास्त्री पथिक जी के गुरु थे और बावा गुरमुख सिंह जी के अन्तरंग थे। उनसे भी बावाजी की प्रंशसा उन्हें यदा कदा सुनने को मिलती रहती थी। पथिक जी द्वारा प्रस्तुत किए गये भजन की पंक्तियां हैं ‘प्रातः सायं सन्ध्या वन्दन परमेश्वर का ध्यान करो। जिस मालिक ने जन्म दिया है उसका सब गुणगान करो।’ कार्यक्रम में उपस्थित श्री धर्मसिंह भजनोपदेशक ने भी अपनी अतीव प्रभावशाली प्रस्तुति कर लोगों को रोमांचित कर दिया। उनके भजन के बोल थे ‘जो किसी का भला नहीं करते वंश उनके चला नहीं करते। जिस में तेल है न कोई बाती है ऐसे दीपक जला नहीं करते।’ उनका दूसरा भजन था ‘कर लो भला होगा भला अन्त भला है, बस यही संसार में जीने की कला है।’ इसके बाद स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी का प्रभावशली प्रवचन हुआ। उन्होंने कहा कि आज हम लोगों को यह क्षण सौभाग्य से प्राप्त हुए हैं। हमें इन क्षणों का सदुपयोग करना है। उन्होंने कहा कि भगवान सारे संसार की बिना किसी की सहायता के रचना करता है। उसके द्वारा सारा संसार बन के खड़ा हो जाता है। उसी परमात्मा ने हमारी माता के गर्भ में हमारे शरीर को बनाकर हमें दिया है। निर्माता परमात्मा हमारे कर्मानुसार हमारे देह बनाता है। हमारा यह भी सौभाग्य है कि हमारा जन्म ऋषियों, वेद व योग के देश में हुआ है। उनका व्याख्यान बहुत ही प्रभावशाली व लम्बा है और सीमाओं में बद्ध होने के कारण यहां पूरा देना सम्भव नहीं हो रहा है। अपने भाषण को विराम देते हुए उन्होंने धर्मप्रेमी साधकों से कहा कि समय समय पर इस तपोभूमि में आकर साधना कीजिये। उन्होंने कहा कि वानप्रस्थी को दूसरे एकान्त स्थान पर जाकर साधनायें कर अपने शरीर को तपाना होना होता है। उन्होंने सबके मंगल की कामना कर अपने वक्तव्य को विराम दिया।
स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी के बाद केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के अध्यक्ष डा. अनिल आर्य जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि किसी भी राष्ट्र का बल उसकी युवा पीढ़ी होती है। उन्होंने कहा कि जहां जहां हम कमजोर हुए हैं, देश का वह हिस्सा हम से टूटा है। इन टूटे हुए हिस्सों में कश्मीर आदि में अब यज्ञ आदि श्रेष्ठ कार्य नहीं होते। उन्होंने कहा कि ‘मौत भी शर्मा जाती है जब कुर्बानी रंग लाती है।’ उन्होंने आगामी दिनों में युवकों के निर्माण के लिए आयोजित 15 शिविरों की सूचना दी। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज ने देश के निर्माण में जो भूमिका निभाई है, वह अद्भूत है। वर्तमान में भी आर्यसमाज को प्रत्येक क्षेत्र में अपनी अग्रणीय भूमिका निभानी है। आर्यसमाज को अपने समाज निर्माण के कार्य को एक आन्दोलन का रूप देना है। उन्होंने स्वामी समर्पणानन्द जी की प्रसिद्ध पुस्तक कायाकल्प से कुछ उदाहरण भी प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि ‘वतन की फिक्र कर नादां मुसीबत आने वाली है, तेरी नादानियों की चर्चायें हैं आसमानों में।’ उन्होंने श्रोताओं से कहा कि अपने व अपने निकटवर्ती बच्चों व युवाओं को आर्यसमाज के कार्यों से जोड़िये। उन्होंने कहा कि ‘इश्क जिनको है अपने वतन का, वह खुदी को मिटाते रहंगे। शमा महफिल में जलती रहेगी तो पतंगे भी आते रहेंगे।। इश्क करने का जो है तरीका, वह आजाद बिस्मिल ने सीखा। उनका दुनिया से जाना न समझों वो सदा याद आते रहेंगे।। चल दिए छोड़ निज वतन को वो सदा याद आते रहेंगे।’ डा. अनिल आर्य ने ओजस्वी शब्दों में सिंहनाद किया ‘प्रण करते हैं संस्कृति की शाम नहीं होने देंगे भारत की आजादी को गुलाम नहीं होने देंगे।’ डा. अनिल आर्य जी के बाद कैलाश कर्मठ जी के भजन हुए। उन्होंने ‘मेरी मां शेरावाली है जिसके शेरों की दुनिया में शान निराली है। मेरी भारतमां शेरावाली है।’ गीत बहुत ही अनूठे व प्रभावशाली अन्दाज में प्रस्तुत किये जिसे सुनकर श्रोता भावविभोर हो गये। इसके बाद स्वामी दिव्यानन्द जी ने अपने आशीर्वचन कहे और कुछ समय तक ध्यान की मौन रहकर साधना कराई। उन्होंने कहा कि ध्यान में हमारी जैसी स्थिति होती है मुक्ति में भी हमारी वैसी ही स्थिति होती है।
सायंकालीन कार्यक्रम में अथर्ववेद का पारायण यज्ञ जारी रहा। अनन्तर श्री रमेशचन्द्र स्नेही, कैलाश कर्मठ तथा पंडित सत्यपाल पथिक जी के भजन व आर्य विद्वान श्री उमेशचन्द कुलश्रेष्ठ जी का प्रभावशाली प्रवचन हुआ। रात्रिकालीन सभा को भजन संन्ध्या के रूप में आयोजित किया गया जिसका प्रभावशाली तरीके से संचालन आर्यजगत के विख्यात व समर्पित नेता यशस्वी डा. अनिल आर्य जी ने किया। इस भजन संन्ध्या में भजन व गीतों की अनेक प्रस्तुतियां हुई। यह कार्यक्रम रात्रि 7.45 बजे से आरम्भ होकर रात्रि 10.45 बजे तक चला। यह कार्यक्रम इतना रोचक एवं प्रभावशाली था कि श्रोता इस कार्यक्रम में संगीत के कलाकारों की प्रस्तुतियों से अति प्रसन्न व सन्तुष्ट हुए। हमारा सौभाग्य था कि हम इस भजन संन्ध्या के साक्षी बने। संगीत सन्ध्या में एक प्रस्तुति दिल्ली की बहिन कविता आर्य की थी जिसके बोल थे ‘सारे नामों में है ओ३म् नाम प्यारा, देने वाला है वो सबको सहारा। हमें और जगत से क्या लेना क्या लेना।’ इनके बाद श्री रमेश चन्द्र स्नेही जी ने प्रस्तुति देते हुए गीत प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘कर भजन ईश्वर का प्यारे सुख उठाने के लिए रास्ता केवल यही है पार जाने के लिए।’ श्री धर्मसिंह जी ने भी ‘हम यही कहते आये और यही कहते हैं, हम एक थे हम एक हैं हम एक रहेंगे।‘ गीत प्रस्तुत कर सभा में श्रोताओं को रोमांचित कर दिया। इनके बाद 15 मिनट तक बहिन श्रीमती मीनाक्षी पंवार के गीतों की प्रस्तुति हुई। उन्होंने दो गीत प्रस्तुत किये। इनके बाद पंडित सत्यपाल पथिक जी ने अपने भजन प्रस्तुत किये। उनके द्वारा प्रस्तुत एक भजन की पंक्तियां हैं ‘सभी समस्याओं का तुम जो समाधान पाना चाहो, पढ़ो महर्षि दयानन्द का अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश।’ संगीत सन्ध्या की सर्वाधिक प्रभावशाली प्रस्तुति संगीत मर्मज्ञ एवं गायक श्री राजेन्द्र काचरू जी की थी। उन्होंने अनेक गीत प्रस्तुत किये जिसका न केवल श्रोताओं अपितु मंचस्थ संगीत के वयोवृद्ध आचार्यों ने भी आनन्द लिया। उन्होंने अपने कार्यक्रम का आरम्भ गायत्री मन्त्र को संगीतमय तरीके से गाकर किया। उन्होंने आरम्भ में कुछ शब्द प्रस्तुत करते हुए कहा कि ‘बाहर भीतर एक रस सरल स्वच्छ व्यवहार कथनी करनी एक सी यही धर्म का सार। परसेवा ही पुण्य है परपीड़न है पाप, पुण्य किए सुख ही मिले, पाप किए सन्ताप।’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘कभी न मन अभिमान हो, हो मित्रों का मान। ऐसे सुखी गृहस्थ का घर हो स्वर्ग समान।’ श्री काचरू जी की प्रस्तुतियों के बाद आर्य भजनोपदेशक श्री कैलाश कर्मठ जी का रात्रि 9.50 बजे से 10.45 तक प्रभावशाली गीतों व भजनों का कार्यक्रम हुआ। उनके द्वारा प्रस्तुत प्रथम गीत था ‘महकती बगिया में मस्त बहार है’। एक अन्य भजन था ‘पति और पत्नी में जहां प्यार है, धरती में स्वर्ग का वह द्वार है।’ कर्मठ जी की प्रस्तुति के साथ ही शान्तिपाठ के साथ आयोजन समाप्त हुआ।
हम पाठकों के ज्ञानार्थ इस आालेख को प्रस्तुत कर रहे हैं। जो बन्धु कई कारणों से इस कार्यक्रम में नहीं आ सके वह पूरी नहीं तो नाममात्र ही सही, इस कार्यक्रम की कुछ पूर्ति प्राप्त कर सकेंगे। हमें लगता है कि उपर्युक्त पंक्तियों से अनेक प्रेरणायें व शिक्षा ली जा सकती हैं।
–मनमोहन कुमार आर्य
प्रिय मनमोहन भाई जी, हमें सजग रहकर अपने अन्दर ही अन्दर परमात्मा से जुडे रहते हुए उसके मुख्य व निज नाम ओ३म् का उच्चारण कर उसका ध्यान करना चाहिये. किसी भी राष्ट्र का बल उसकी युवा पीढ़ी होती है तथा ‘पति और पत्नी में जहां प्यार है, धरती में स्वर्ग का वह द्वार है।’ अति मनमोहक.
आपने लेख की मुख्य बातों को चिन्हित किया है। यह वस्तुतः उत्तम विचार हैं और शायद निर्विवाद हैं. मुझे भी इस लेख की सभी बातें प्रिय हैं. आपकी उत्तम प्रतिक्रिया के हार्दिक धन्यवाद बहिन जी.
प्रिय मनमोहन भाई जी, मुख्य बातों को चिन्हित करने और उनको बार-बार पढ़ने से वे मन का एक अनमोल हिस्सा बन जाती हैं. इसलिए हमें ऐसा करने में अत्यंत हर्ष मिलता है.
आपने बहुत महत्वपूर्ण बात को बड़े ही सरल शब्दों में कहा है। मैं भी जब कोई पुस्तक पढता हूँ तो जो पंक्तियां मुझे अच्छी लगती हैं उन्हें मैं हाइलाइटर से रेखांकित कर देता हूँ। हार्दिक धन्यवाद बहन जी।
मनमोहन भाई , आप इस समागम का आनंद ले रहे हैं , बहुत अच्छा लगा .
नमस्ते एवं धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। आज तपोवन आश्रम का ग्रीष्मोत्सव संपन्न हो गया। मुझे इसमें अनेक प्रकार का सुख वा आनंद मिला। अनेक विद्वानों एवं भजनोपदेशकों के विचार तो सुने ही, इसके साथ अनेक नए व पूर्वपरिचित विद्वानों से मिलने वा उनसे वार्तालाप कर अनेक नयी जानकारियां भी मिली। मेरे स्वाभाव के अनुकूल होने के कारण मुझे इस सबमे बहुत अच्छा लगा। आपने लेखों को पढ़ा, मुझे लगता है कि कुछ बाते शायद आपको भी अच्छी लगी होंगी। सादर धन्यवाद।