कविता

“मुक्त काव्य”

 

लगा ज़ोर का झटका है धीरे से
भाई लूटो तो तनिक सलीके से
बिना आग के उठता नहीं धुआँ
करोड़पती कब कमाता पसीने से॥
देश है अपना कुछ भी बेंच देंगे
मिली नागरिकता हक बेंच देंगे
हिस्सा तो कण-कण पर सबका
जमीर तो क्या आत्मा बेंच देंगे॥
रिश्वत के बाजार में बिरले बचेंगे
धंधे में विचौलिये ही ताकत बनेंगे
घाटे का सौदा न होता है जनाब
माल-खेप कागज पर उतरेंगे चढ़ेंगे॥
आदमी ही बिकता है माल के मोल
बड़े-बड़ों के बीच तोल-मोल के बोल
तस्वीर कैसी है पसीना छूट जाएगा
देश से बड़ा रुपैया है पोलम के पोल॥
देश की सेवा में आए कितने तोप
शंकालू बीज बिन मतलन न रोप
उड़नतस्तरी छू हुई न दिखे आकाश
आलम बेईमानी में कैसा है यह कोप॥
जनता का पैसा है फूँको और तापो
तागड़धिन्ना करो पर ऐसे न कापो
हिम्मत रखो बुखार है उतर जायेगा
रुपयों का बना मनका उसी को जापो॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

2 thoughts on ““मुक्त काव्य”

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    बहुत बढिया रचना

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीया विभा रानी श्रीवास्तव जी

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