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हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल महामहिम आचार्य देवव्रत जी ने आर्यसमाज को सशक्त बनाने के अनेक उपाय सुझाये

ओ३म्

वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का पांच दिवसीय उत्सव सम्पन्न-

वैदिक साधन आश्रम का पांच दिवसीय ग्रीष्मोत्सव रविवार 15 मई, 2016 को सोल्लास सम्पन्न हुआ। समापन दिवस का मुख्य आकर्षण हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल महामहिम आचार्य देवव्रत जी का देश भर से बड़ी संख्या में आये आर्यजनों को प्रभावशाली सम्बोधन था। पूर्वान्ह 10 बजे आश्रम में पहुंचने पर इसके मुख्य द्वारा पर आश्रम के प्रधान श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री, सचिव इं. प्रेम प्रकाश शर्मा, आर्यनेता और केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के अध्यक्ष डा. अनिल आर्य, स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती, डा. वेद प्रकाश गुप्ता, डा. सुश्री अन्नपूर्णा, श्री सुखबीर सिंह वर्मा, आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तराखण्ड के प्रधान श्री गोविन्द सिंह भण्डारी व आश्रम के सभी न्यासियों एवं अनेक गणमान्य व्यक्तियों द्वारा मुख्य अतिथि का स्वागत एवं सम्मान वैदिक रीति से वेद मन्त्रोच्चार पूर्वक किया गया।  मुख्य द्वार से नवनिर्मित सभागार तक मार्ग के दोनों ओर तपोवन विद्या निकेतन, द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल, श्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल पौन्धा के छात्र- छात्राओं और केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के युवकों ने वेदमन्त्रोच्चार एवं पुष्प वर्षा कर मुख्य अतिथि महोदय का सम्मान किया। नवनिर्मित सभागार के मुख्य द्वार पर पहुंच कर मुख्य अतिथि माननीय राज्यपाल जी ने वैदिक ध्वज ओ३म् का ध्वजारोहण किया। उसके पश्चात उन्होंने सभा के नये भवन महात्मा प्रभु आश्रित सभागार’ का विधिवत् उद्घाटन किया। इसके पश्चात माननीय राज्यपाल जी मंच पर पधारे जहां आर्यसमाज के श्रद्धालुओं से खचाखच भरे हुए सभाभवन में प्रत्येक उपस्थित व्यक्ति द्वारा उनका खड़े होकर स्वागत किया गया। मंच पर मुख्य अतिथि महोदय के पहुंचने पर सबने खड़े होकर राष्ट्रगान गाया। इसके बाद राज्यपाल महोदय ने आश्रम के अधिकारियों के साथ मिलकर दीप प्रज्जवलन किया। दीप प्रज्जवलन के बाद द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की कन्याओं ने राज्यपाल महोदय के सम्मान में स्वागत गान गाया। तपोवन विद्यानिकेतन की 10 छात्राओं ने भी स्वागत गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए सुश्री सुनीता बुद्धिराजा द्वारा आश्रम की स्थापना की पृष्ठिभूमि सहित आश्रम की गतिविधियों का परिचय मुख्य अतिथि महोदय को दिया गया। बहिन सुनीता जी ने बताया कि महात्मा प्रभु आश्रित जी द्वारा सन् 1939 में उनके पूर्वजों के यहां यज्ञाग्नि प्रज्जवलित की थी। उनके परिवार ने उस अग्नि को अभी तक बुझने नहीं दिया। वह अग्नि आज भी प्रज्जवलित हैं जहां प्रतिदिन यज्ञ किया जाता है। सुनीता जी ने यह भी बताया कि आज हम स्वामी दीक्षानन्द जी का स्मृति दिवस मना रहे हैं। इसके पश्चात आश्रम के सचिव श्री प्रेम प्रकाश शर्मा ने मुख्य अतिथि महामहिम राज्यपाल जी का स्वागत किया। उन्होंने इस अवसर पर सम्मानित होने वाले महानुभावों के नाम भी सभा में घोषित किए।

 

श्री सुनीता जी ने कहा कि हम आचार्य देवव्रत जी के राज्यपाल बनने से प्रसन्न, रोमांचित, आनन्दित व अभिभूत हैं इसलिए कि हमारे विचारों वाले एक ऋषि भक्त को वर्तमान समय में राज्यपाल जैसे गरिमामय पद पर नियुक्त होने का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि यह हम सबका सौभाग्य है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल महोदय ने अपने श्रेष्ठ आचारण और गुणों का प्रभाव अपने राज्य पर छोड़ना आरम्भ कर दिया है। यदि आप जैसे राज्यपाल सभी राज्यों में हों तो हमारा देश विश्व का सिरमौर देश बन सकता है। बहिन सुनीता जी ने बताया कि इस नये भवन की प्रेरणा आश्रम के न्यासी श्री आशीष दर्शनाचार्य जी द्वारा की गई थी। आचार्य जी आश्रम में समय समय पर युवकों के व्यक्तित्व निर्माण सहित योग शिविर लगाते रहते हैं जहां उन्हें आधुनिक तरीकों से अपनी बात नई पीढ़ी के युवकों को समझानी होती है। इसके लिए आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित इस नये सभागार की आवश्यकता थी। आश्रम की कार्यकारिणी ने इस प्रस्ताव पर विचार किया। आश्रम के प्रधान श्री दर्शनकुमार अग्निहोत्री जी का भी इस प्रस्ताव को समर्थन मिला। सभी ने सहयोग किया जिसका परिणाम यह भव्य व विशाल भवन है। बहिन सुनीता जी ने आचार्य देवव्रत जी के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश के एक श्रेष्ठ राज्य बनने की कामना की और उनका अभिवादन एवं स्वागत किया।

 

आचार्य देवव्रत जी ने अपने व्याख्यान में कहा कि जिन महानुभावों ने उन्हें इस वैदिक साधन आश्रम तपोवन की पवित्र तपोस्थली पर आमंत्रित कर उन्हें सम्मान व स्नेह प्रदान किया है उनके प्रति वह सम्मान व्यक्त करते हैं और उनका धन्यवाद करते हैं। उन्होंने कहा कि वह आज जो कुछ भी हैं उसका श्रेय ऋषि दयानन्द सरस्वती जी को है। यदि मैं ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज की शरण में आता तो आज इस स्थिति में कदापि होता। आचार्यजी ने कहा कि महात्मा आनन्द स्वामी, महात्मा प्रभु आश्रित जी और अनेक तपस्वियों ने इस स्थान को अपनी तपस्थली बनया और दूसरों के लिए तप का मार्ग प्रशस्त किया। आचार्य आशीष दर्शनाचार्य को उन्होंने आर्यसमाज का गौरव बताया। उन्होंने आषीश जी द्वारा इस तपोभूमि को अपना कार्यक्षेत्र बनाने की प्रशंसा की और कहा कि वह हमें आर्य सिद्धान्तों से जोड़ रहे हैं। आज इस आश्रम का नया स्वरूप देखकर मैं प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूं।  मेरा विश्वास है कि यहां युवकों को वैदिक विचारों का बनाने के प्रशिक्षण शिविर सहित आध्यात्म के शिविर लगेंगे और सिद्धान्तों पर चिन्तन होगा। हमें आशा है कि आचार्य आशीष जी इन कार्यों को आगे बढ़ायेंगे।

 

आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि मेरे पूर्व दो विद्वानों आचार्य आशीष और डा. राजेन्द्र विद्यालंकार ने आर्यसमाज की वर्तमान दशा पर पीड़ा व्यक्त की है। आपने उनकी भावनाओं व विचारों का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द ने तिल-तिल कर अपने जीवन को आहूत किया। विद्वान वक्ता ने कहा कि यदि स्वामी दयानन्द न आते तो हम भी पौराणिक साधुओं की तरह कमण्डलु लिये हुए बैठे होते। ऋ़षि दयानन्द ने ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होने पर भी किसी के प्रति अपने पराये का भेद कभी नहीं किया। महामानव ऋषि ने हमारा वेद से परिचय कराया। हमने उस सर्वहितैषी को जहर पिलाया फिर भी उन्होंने अपने सत्य मानव कल्याण के रास्ते को नहीं छोड़ा। उनकी दया कृपा से हम अन्धविश्वासों से दूर रहते हुए सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। महामहिम राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी ने आर्यसमाज के नौवें नियम की चर्चा की जिसमें कहा गया है कि प्रत्येक मनुष्य को अपनी ही उन्नति में सन्तुष्ट नहीं रहना चाहिये अपितु सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिये। आर्य समाज के सभी सिद्धान्त सत्य पर आधारित हैं जो हमें सुख देते हैं। हमें उन्हें सभी मनुष्यों तक पहुंचाना चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि हमारे पास वेद का खजाना और सत्य का मार्ग है। हमें इस पर चिन्तन कर संसार को इससे लाभान्वित करना चाहिये। आचार्य जी ने उदाहरण देकर समझाते हुए कहा कि एक अन्धा व्यक्ति कुंवें के सामने से गुजर रहा है। हमारा कर्तव्य है कि हम उसे कुवें में गिरने से बचायें। यदि हम उसे नहीं बचायेंगे तो पाप के भागी होंगे। वेद का ज्ञान ऐसी आंख हैं जो अन्धकार व अज्ञान में पड़े हुए लोगों को कुंवे में गिरने से बचा सकती है। विद्वान आचार्य जी ने कहा कि स्वतन्त्रता के आन्दोलन में आर्यसमाज के अस्सी प्रतिशत लोगों की भागीदारी थी जिससे देश आजाद हुआ। आचार्य जी ने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति से यदि आर्यसमाज का चर्चा करते हैं तो वह कहता है कि उसके परिवार का पुराना अमुक अमुक व्यक्ति आर्यसमाजी था। यह आर्यसमाज की महत्ता का प्रकाशक है। आचार्यजी ने कहा कि आज विज्ञान का युग है अतः हमें अपनी मान्यताओं को सत्य, ज्ञान व विज्ञान की कसौटी पर कसते रहना है। उन्होंने कहा कि आज हम यहां स्वामी दीक्षानन्द जी की जयन्ती मना रहे हैं। आज हमें उनके स्मृति दिवस पर यह संकल्प लेना चाहिये कि हम आर्यसमाज की विचारधारा को जन जन तक पहुंचायेंगे और समाज से सभी प्रकार के भेदभाव दूर करेंगे।

 

आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि पुराने समय में आर्यसमाजियों की समाज में गौरवपूर्ण स्थिति थी। अनेक प्रमाण है कि यदि किसी न्यायालय में कोई आर्यसमाजी गवाही देता था तो न्यायाधीश महोदय आर्यसमाजी की गवाही को सत्य मानकर फैसला आर्यसमाजी की गवाही के अनुसार करते थे। इसका कारण था कि आर्यसमाजी कभी झूठ नहीं बोलते थे। आज स्थिति ऐसी नहीं है। आज हमें अपनी पूर्व स्थिति में लौटने की आवश्यकता है। आचार्यजी ने कहा कि देश में पाखण्ड और अंधविश्वास बढ़ रहे हैं। मनुष्य समाज को प्रकाश की ओर केवल आर्यसमाज ही ले जा सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसे व्यक्ति तैयार करें जो आर्यसमाज को गतिशील कर सके। श्री आशीष दर्शनाचार्य और डा. राजेन्द्र विद्यालंकार के व्याख्यानों की ओर सकेंत कर महामहिम राज्यपाल जी ने कहा कि इनके द्वारा व्यक्त विचारों पर चिन्तन करें। आचार्यजी ने कहा कि स्वामी श्रद्धानन्द, स्वामी दर्शनानन्द तथा महात्मा फूलसिंह जी आदि ने गुरुकुल परम्परा को जन्म दिया। आज का समय इस विषय में चुनौतीपूर्ण है। विवेक के साथ हमें समस्याओं को समझना होगा। सत्यार्थप्रकाश में महर्षि दयानन्द द्वारा वर्णित गुरुकुल की परम्परा लुप्त नहीं होनी चाहिये। गुरुकुल की परम्परा को जीवित रखने का आचार्यजी ने आह्वान किया। उन्होंने धर्मप्रेमी श्रोताओं से पूछा कि क्या आप में से किसी के बच्चे गुरुकुल में पढ़ते हैं। इसका रास्ता क्या है? शिक्षा की आर्ष परम्परा को आप जीवित रखें। इसके लिए गुरुकुलों को दान दिया करें। वेदों का स्वाध्याय कर वेद से जुड़े रहें। उन्होंने बताया कि गुरुकुल कुरुक्षेत्र 34 वर्षों से देश व समाज की सेवा में प्रयासरत है। इस गुरुकुल में छः सात प्रान्तों के बालक आर्ष परम्परा से अध्ययन करते हैं। हम बच्चों को यहां निःशुल्क पढ़ाते हैं। समाज के जो बालक आर्यसमाज व वेद के प्रचारक बनना चाहते हैं उन्हें आप हमारे पास भेंजे। बालकों की शिक्षा व उनके वस्त्र, पुस्तकें, भोजन व अन्य सभी सुविधायें हमारे यहां निःशुल्क हैं।

 

आचार्यजी ने आर्य भजनोपदेशक डा. कैलाश कर्मठ जी की चर्चा करते हुए बताया कि उन्होंने कुरुक्षेत्र गुरुकुल में 150 प्रतिनिधियों के साथ एक भजनोपदेशक सम्मेलन किया था। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज का ग्रामीण क्षेत्रों में जो प्रचार प्रसार हुआ है उसका सर्वाधिक श्रेय आर्यसमाज के भजनोपदेशकों को ही है। आज वह परम्परा समाप्त हो गई है। आज हमारी सार्वदेशिक सभा अन्य प्रतिनिधि सभाओं के पास कितने भजनोपदेशक उपदेशक हैं, शायद् एक भी नहीं है। एक समय था जब कि आर्य प्रतिनिधि सभा, पंजाब में 80 भजनमण्डलियां होती थीं और लगभग 150 उपदेशक होते थे। हमारे पं. सत्यपाल पथिक जी भी उनमें से एक हैं। आचार्य जी ने आगे कहा कि हम अपने बच्चों को गुरुकुल आर्यसमाजों में नहीं भेजते। अपने बच्चों परिवार को आर्यसमाज में लाना नहीं और दूसरों को आर्यसमाज में घुसने नहीं देना, इस प्रकार की हमारी प्रवृत्ति मनोवृत्ति है। ऐसे लोग समाज में है। उन्होंने पूछा कि ऐसा कब तक चलेगा? पारिवारिक दायित्वों से मुक्त बुजुर्गों का धर्म बनता है कि वह आर्यसमाज में निवास किया करें। बच्चों वा युवकों जिम्मेदारियां दें और उनको प्रशिक्षित करें। आचार्य कुल वैदिक परम्पराओं को बच्चों में बढ़ायें। आचार्य जी ने गर्व से कहा कि आर्यसमाज हमारी माता है। हमें इसकी हर प्रकार से रक्षा करनी है।

 

आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि जिसे कुवें से पानी निकलता रहे और स्रोत से पानी न आता हो तो वह कुंआ कुछ दिन बाद सुखेगा ही। हम समाज के लिए जितना काम कर सकते हैं उतना हमें करना चाहिये। घर में अपने बच्चों के पालन की तरह आर्यसमाज में भी सहयोग करें। उन्होंने कहा कि अपने बच्चों को आर्यसमाज में भेंजे तभी आर्यसमाज बचेगा। आचार्यजी ने अपने कुरुक्षेत्र के आर्ष गुरुकुल का परिचय दिया और नये भजनोपदेशक विद्यालय की स्थापना की जानकारी सभा में दी। उन्होंने कहा कि भजनोपदेशक विद्यालय का नया भवन आगमी 6 महीनों में बन जायेगा। इसमें सभी प्रकार के वाद्ययन्त्रों व उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था होगी। जो व्यक्ति भजनोपदेशक बनना चाहें उनके लिये निःशुल्क व्यवस्था है। आप इसमें हमारा सहयोग करें। उन्होने श्रद्धालुओं से एक भजनोपदेशक बनाने का संकल्प लेने को कहा। आचार्यजी ने कहा कि हमने आर्य भजनोपदेशक और वैदिक विद्वान प्रचारक बनाने की निःशुल्क व्यवस्था कर दी है। आचार्य जी ने आगे कहा कि आर्यसमाजियों के बेटे-बेटियां गुरुकुल में नहीं पढ़ते। गुरुकुल भी अन्य स्कूलों की तरह उनसे विशिष्ट शिक्षा व विद्याध्ययन का एक केन्द्र है। यहां बालकों को सन्ध्या-हवन-आसन-प्राणायाम-योगाभ्यास व व्यायाम आदि भी कराये जाते हैं। हमारे अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के स्कूलों में प्राचीन परम्पराओं का पूरी तरह अभाव है और इनमें मैकाले की पद्धति चल रही है। हमारे गुरुकल के ब्रह्मचारी डाक्टर, इंजीनियर, आईएएस, पीसीएस आदि नहीं बनते। हम कुरुक्षेत्र में गुरुकुल के एक विभाग के रूप में सीबीएसई पैटर्न पर भी एक आवासीय गुरुकुल चला रहे हैं जहां 17 प्रान्तों के 1450 बच्चे पढ़ते हैं जिनमें अमेरिका व दुबई सहित अनेक उन्नत देशों व स्थानों के बच्चे भी हैं। इन बच्चों में से किसी एक बच्चे की भी द्वितीय श्रेणी नही आती। सभी प्रथम श्रेणी व उच्च मेरिट लेकर उत्तीर्ण होते हैं। इस वर्ष हमारे इस गुरुकुल के 23 बच्चों ने आईआईटी उत्तीर्ण किया है। 11 बच्चों का चयन एनडीए में हुआ है। उन्होंने बताया कि हमारे यहां इस वर्ष नये बच्चों के प्रवेश के लिए कक्षा 5 तक 250 स्थान रिक्त हुए थे। हमें इन 250 स्थानों के लिए 6000 आवेदन पत्र प्राप्त हुए। 250 बच्चे चयनित हुए व शेष को निराश होना पड़ा। आचार्य जी ने कहा कि हमारे बच्चे संस्कारित हैं। वह सब अपने माता-पिता-गुरुओं व बड़ों का आदर करते हैं। उनमें देशभक्ति की भावना है। आचार्य जी ने कहा कि हमने अम्बाला में बेटियों का गुरुकुल बनाया है जिसमें 500 बेटियां पढ़ रही हैं। उन्होंने आर्यों से कहा कि इस बात को अपने विचारों के केन्द्र में रखें कि आर्य विचारधारा समाज देश में जीवित रहे, पल्लिवित पुष्पित हो। वैदिक शिक्षा का सर्वत्र प्रचार हो।

 

आचार्य जी ने गोरक्षा पर भी अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि हमने देशी गायों की नस्ल का सुधार किया जिसके परिणामस्वरुप हमारी गायें 22 किलो दूध प्रतिदिन देती हैं। हमारी गोशाला में 45 किलो प्रतिदिन दूध देने वाली गायें भी हैं। हिचाचल प्रदेश में देशी गाय मात्र 2 किलो ही दूध देती हैं। हमने यहां भी गायों की नस्ल के सुधार का कार्य आरम्भ करा दिया है। हमने कृषि विश्वविद्यालय में शिविर लगायें हैं। आचार्यजी ने जैविक खेती की चर्चा भी की। उन्होंने कहा कि तीस वर्ष पहले व्यक्ति मधुमेह, रक्तचाप तथा दिल के दौरे आदि रोगों को जानते भी नहीं थे। इन रोगों का कारण विषयुक्त खेती अर्थात् रासायनिक सिंथेटिक खाद से खेती करना है। आचार्य जी ने वृक्ष लगाने और नियमित यज्ञ हवन करने का संकल्प लेने को कहा। भ्रूण हत्या की चर्चा कर आचार्यजी ने इसके विरुद्ध कार्य करने को कहा। उन्होंने कहा कि नारी जाति का जितना सम्मान महर्षि दयानन्द ने किया है उतना किसी अन्य महापुरुष ने नहीं किया। पद्मश्री सम्मान से सम्मानित दक्षिण भारत के श्री सुभाष पालेकर की चर्चा कर आचार्य जी ने बताया कि वह एक गाय से शून्य बजट वा व्यय से 30 एकड़ भूमि में खेती करते हैं। किसान को बाजार से कुछ खरीदना नहीं पड़ता। 40 लाख किसान उनके सहयोगी व अनुयायी हैं। आचार्यजी ने कहा कि हम कुरुक्षेत्र गुरुकुल की 200 एकड़ भूमि में जैविक खेती करते हैं। हमारे ब्रह्मचारी देश में आयोजित जिस प्रतिस्पर्धा व प्रतियोगिता में जाते हैं वहां से स्वर्ण पदक लेकर आते हैं। आचार्यजी ने देश में युवाओं व छात्रों में बढ़ रही नशे की प्रवृत्ति की भी चर्चा की और देश को नशा मुक्त करने की आवश्यकता पर बल दिया। आचार्यजी ने समस्या पर प्रकाश डालते हुए कहा कि नशे के विरुद्ध प्रचार करना आर्यसमाज का काम है। इसी से हमारी पहचान होती है। वेद प्रचार कार्य को हमें बढ़ाना है। इसके लिए हमें अधिक से अधिक वेद प्रचारक बनाने होंगे। जो लोग वेद प्रचारक बनेंगे उन्हें रोजगार सहित घर, परिवार व सम्मान आदि भी प्राप्त होगा। आचार्य जी ने आश्रम के सभी अधिकारियों व उपस्थित लोगों का आभार और धन्यवाद व्यक्त किया और आश्रम को 1 लाख रूपये का दान देने की घोषणा की। वेदमनीषी स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती जी की स्मृति को प्रणाम किया। उन्होंने कहा कि मैं प्रभु आश्रित जी महाराज को भी प्रणाम करता हूं। सबका धन्यवाद कर उन्होंने अपने वक्तव्य को विराम दिया।

 

इस अवसर पर तपोवन विद्या निकेतन तथा द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल के बच्चों की ओर से अनेक प्रशंसनीय प्रस्तुतियां हुईं। बच्चों के नृत्य भी हुए। अनेक महानुभाव सम्मानित हुए जिनमें स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी, आचार्य आशीष जी, डा. अनिल आर्य, डा. राजेन्द्र विद्यालंकार, श्री गोविन्द सिंह भण्डारी, आश्रम को सहयोग करने वाली अनेक विभूतियों सहित गीतकार राजेन्द्र काचरू भी सम्मिलित हैं। महामहिम राज्यपाल आचार्य देवव्रतजी का भी सम्मान किया गया। डाटाविन कम्पनी की ओर से अपनी 10 टैबलेट भी तपोवन विद्या निकेतन के बच्चों को वितरित की गईं। आश्रम द्वारा प्रकाशित सन्ध्या हवन विषयक पुस्तक का लोकार्पण माननीय राज्यपाल महोदय के करकमलों से सम्पन्न हुआ। डा. कैलाश कर्मठ सहित आचार्य आशीष और डा. राजेन्द्र विद्यालंकार जी के प्रभावपूर्ण सम्बोधन हुए। स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती के स्मृति दिवस के अवसर पर अग्निहोत्री धर्मार्थ न्यास और वैदिक साधन आश्रम तपोवन की ओर से श्री श्रद्धानन्द शर्मा, चौधरी लाजपत राय, श्री राजेन्द्र काचरू व आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी को सम्मानित किया गया। तपोवन आश्रम का यह ग्रीष्मोत्सव 11 मई से आरम्भ होकर 15 मई, 2016 को समाप्त हुआ। इन पांच दिनों में प्रातः 5.00 बजे से एक घटां प्रतिदिन योगाभ्यास का प्रशिक्षण दिये जाने सहत उसका अभ्यास कराया गया। प्रतिदिन प्रातः 6.30 बजे से लगभग प्रातः 8.45 बजे तक अथर्ववेद का आंशिक पारायण यज्ञ स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती के ब्रह्त्व में होता रहा और उसके अनन्तर पं. सत्यपाल पथिक जी, डा. कैलाश कर्मठ, श्री धर्म सिंह, श्री रमेश चन्द्र स्नेही आदि के भजन व वैदिक विद्वानों श्री आशीष दर्शनाचार्य एवं पं. उमेशचन्द कुलश्रेष्ठ जी के प्रवचन होते रहे। यज्ञ में वेद-मन्त्रोच्चार गुरुकुल पौंधा के दो योग्य ब्रह्मचारी श्री शिवकुमार जी एवं श्री ओम् प्रकाश जी ने किया। इस बार आश्रम में अतिथियों की उपस्थित पूर्व वर्षों में काफी अधिक थी जिससे सभी अधिकारी उत्साहित व प्रसन्न हैं। सुदूर बिहार से भी 33 व्यक्तियों का एक प्रतिनिधिमण्डल यहां आया। दिल्ली के प्रसिद्ध यशस्वी आर्यनेता व केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के अखिल भारतीय अध्यक्ष डा. अनिल आर्य लगभग 200 व्यक्तियों के साथ तपोवन आश्रम में पधारे थे। इस अवसर पर युवा सम्मेलन, महिला सम्मेलन व संगीत सन्ध्या जैसे अविस्मरणीय उपयागी कार्यक्रम भी हुए। 14 मई को आश्रम 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तपोभूमि में भी विशाल सत्संग का सफल व अविस्मरणीय आयोजन हुआ। राज्यपाल महोदय भी 15 मई को आश्रम के कार्यक्रम के बाद इस तपोभूमि का अवलोकन करने पधारे। वैदिक साधन आश्रम तपोवन के यशस्वी मन्त्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा तथा यशस्वी प्रधान श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी ने अपनी टीम के साथ आगन्तुक सभी श्रद्धालु व ऋषिभक्त अतिथियों की सुख सुविधाओं का रात दिन तत्पर रहकर पूरा ध्यान रखा जिसके लिए सभी बधाई के पात्र हैं। हमने भी प्रतिदिन एक या दो-दो विस्तृत समाचार तैयार कर नैट के द्वारा फेश बुक व नैट साइटों पर अपलोड करने के साथ इमेल द्वारा समाचार पत्रों सहित बड़ी संख्या में देश विदेश के आर्य व इतर बन्धुओं तक पहुंचाने का प्रयास किया। इस बार का ग्रीष्मोत्सव अविस्मरणीय रहा जो यहां के अधिकारियों के सन्तोष का विषय होगा, ऐसी हम आशा करते हैं।

मनमोहन कुमार आर्य

2 thoughts on “हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल महामहिम आचार्य देवव्रत जी ने आर्यसमाज को सशक्त बनाने के अनेक उपाय सुझाये

  • लीला तिवानी

    प्रिय मनमोहन भाई जी, आचार्य देवव्रत जी ने ठीक ही कहा कि जिसे कुवें से पानी निकलता रहे और स्रोत से पानी न आता हो तो वह कुंआ कुछ दिन बाद सूखेगा ही. वैदिक शिक्षा का सर्वत्र प्रचार होना श्रेयस्कर है. अति उत्तम आलेख के लिए आभार.

    • मनमोहन कुमार आर्य

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद बहिन जी। आपने लेख पढ़ा और उस पर प्रशंसनीय प्रतिक्रिया दी, इससे मैं स्वयं को गौरवान्वित समझता हूँ। हार्दिक आभार एवं धन्यवाद।

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