लघुकथा : एक उपकार ऐसा भी
फटेहाल एक बच्चा कुछ सामान बेचते हुए पास आया- “दीदी ले लो न “
किसी को पहली बार दीदी बोलते सुनकर हल्की हँसी आ गई बो भी छोटे बच्चे से. “कितने का है “
“50 “
बिना मोलभाव किये उसे 50 रूपये दे दिये, ये जानते हुए भी कि 50 से बो 10 पर भी आ सकता था।
तभी उसका छोटा भाई भी आ गया… “एक और ले लो न दीदी “
एक बार फिर से दीदी ….. हा हा हा हा हा ऐसा लग रहा था इस उम्र में दीदी बोलकर चापलूसी की जा रही हो…
50 रूपये दिये पर सामान नहीं लिया… “दीदी भीख नही दो, सामान भी लो न “
उसकी मासूमियत मन मोह रही थी “हमममम… ऐसा करो ये सामान जल्दी से किसी और को बेचकर आओ, और बो पैसे मुझे दे देना,, फिर तो ठीक है न…. जब तक में यहीं खडी हूँ “
“ठीक है दीदी, आप जाना नहीं ” ऐसा कहकर बो आगे बढ गया… और इधर दीदी भी आगे बढ गई
— रजनी विलगैंया