सुबह हुई फिर शाम हुई
सुबह हुई फिर शाम हुई बातो बातो में रात हुई
रातो में जो बात हुई वो तन्हाई के साथ हुई
साथ साथ में हम दोनों ने रातें काली कर डाली
एक रात में हम दोनों ने बात निराली कर डाली
बात बात में याद आया कि साथ हमारे कौन है
क्यों चुप हैं सारी दीवारेँ दरवाजे क्यों मौन है
चाँद भी आया है महफ़िल में अपनी तन्हाई लेकर
देख तू खिड़की खोल ज़रा आज ये क्यों बरसात हुई।
सुबह हुई फिर शाम हुई बातो बातो में रात हुई
रातो में जो बात हुई वो तन्हाई के साथ हुई।
घड़ी के कांटे टिक टिक करके मुझसे ये बतलाते हैं
रुकना मत तू चलते रहना दर्द तो आते जाते हैं
ठंडी बहती सर्द हवाएं कानो में कुछ कहती हैं
रुत बदलेगी ,सावन होगा , अच्छे दिन भी आते हैं
आएगी दीवाली दिए जलेंगे सब कुछ रोशन हो जायेगा
बस थोडा सा फिसला है तू अभी ना तेरी मात हुयी
सुबह हुई फिर शाम हुई बातो बातो में रात हुई
रातो में जो बात हुई वो तन्हाई के साथ हुई।
बहुत रात हुई ऐ तन्हाई चल तकिया ले तू भी सो जा
ऐ चंदा तू भी ले ले करवट मीठी निंदिया में खो जा
दरवाजों और दीवारों , कान खोल कर सुन लेना
जो बात हमारे बीच हुई वो बात किसी से न कहना
घडी के कांटो और हवाओं चलते रहना सदा ही तुम
मिलेंगे कल फिर रात को गर सांस ये मेरे साथ हुई
सुबह हुई फिर शाम हुई बातो बातो में रात हुई
रातो में जो बात हुई वो तन्हाई के साथ हुई।
— विजय गौत्तम