चार मुक्तक
1.
आन बान शान से जवान तुम बढ़े चलो
विघ्न से डरो नहीं हिमाद्रि पर चढ़े चलो
वीर तुम तिरंग के हजार गीत गा सको
शानदार जीत के प्रसंग यूँ गढ़े चलो
2.
सरगम हवाओं की मुहब्बत से भरी सुन लो जरा
महकी फ़िजा से फूल की तासीर को गुन लो जरा
हर ओर हैं उसके नजारे जो नजर आता नहीं
उस प्रीत की तस्वीर से बस श्याम को चुन लो जरा
3.
अम्बर प्यासा धरती प्यासी राहें मेघों की भटकी हैं
तरुवर प्यासे चिड़िया प्यासी कलियाँ सूखी सी लटकी हैं
खेतों की वीरानी में कोलाहल सूखे का गूँज रहा
अपनी करनी पर पछताती मानव की साँसें अटकी हैं
4.
आपके जो ख्वाब में पलते रहेंगे
चाँदनी बन रात में चलते रहेंगे
आँधियों में दीप को बस देख लेना
प्रेरणा बन कर सदा जलते रहेंगे
————ऋता शेखर ‘मधु’———–
बढिया मुक्तक !