डा. भवानीलाल भारतीय के पठनीय महत्वपूर्ण विचार
ओ३म्
आज हम प्रातः डा. भवानीलाल भारतीय जी की पुस्तक ‘महर्षि दयानन्द और स्वामी स्वामी विवेकानन्द’ जी में एक लेख विषयक कुछ जानकारी ढूंढ रहे थे। इस पुस्तक की भूमिका में हमने उनकी लिखी कुछ पंक्तियां पढ़ी। मन हुआ कि इन्हें सभी मित्रों से साझा करें।
डा. भारतीय उक्त पुस्तक की भूमिका वा प्राक् निवेदन में लिखते हैं कि ‘भारतीय तत्व चिन्तन के आधार पर पुनर्जागरण और नवोदय का एक विशुद्ध स्वदेशी आन्दोलन प्रवर्तित करने वाले दयानन्द सरस्वती भी मूलतः उसी संस्कारक वर्ग में परिगणित होंगे जिन्होंने यह स्पष्ट घोषणा की थी कि विभिन्न पुरातन आचार विचार केवल प्राचीन एवं परम्परा प्राप्त होने के कारण ही सर्वांश में साधु तथा ग्राह्य नहीं होते। इसी प्रकार जो कुछ नवीन है वह भी अनिवार्यतः अवंद्य ही हो, यह भी आवश्यक नहीं है। दयानन्द के रूप में भारतीय इतिहास में एक ऐसा युग पुरुष अवतरित हुआ जो भारत के दिव्य एवं गरिमाशाली अतीत से प्रेरणा लेते हुए भी धर्म, समाज तथा संस्कृति के क्षेत्र में बहुमुखी क्रान्ति का समर्थक था तथा जिसने मध्याकालीन धार्मिक–सामाजिक रूढ़ियों, मूढ़ विश्वासों तथा परम्परागत अन्य धारणाओं का प्रबल विरोध किया। ऋषि दयानन्द द्वारा प्रवर्तित इस वैचारिक क्रान्ति को सुप्रसिद्ध अमरीकी विचारक एण्ड्रयू जैक्सन डेविस ने एक ऐसी प्रचण्ड अग्नि से उपमित किया है जो संसार में व्याप्त अज्ञान, अन्याय और अत्याचार को जलाकर के ही दम लेगी।’
इन पंक्तियों के लेखक को इस बात का दुःख है कि श्री एण्ड्रयू जैक्सन डेविस जी की भविष्यवाणी व अनुमान सत्य सिद्ध न हो सका।
–प्रस्तुतकर्ता मनमोहन कुमार आर्य
प्रिय मनमोहन भाई जी, अति सुंदर पंक्तियां शेयर करने के लिए. अभी समय गया नहीं है, लोग जागरुक हो रहे हैं. हमारा प्रयत्न जारी रहना चाहिए. चरैवेति, चरैवेति.
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन ही। आपकी पंक्तियों ने निराश ह्रदय में आशा की किरण उत्पन्न की है। मैं भी सबको यही बात कहता था। परन्तु आज मैंने यह नकारात्मक पंक्ति लिख दी थी। सादर धन्यवाद।