“पद”
मोहन का तकि चित विसरायों
मथुरा तजि गोकुल में आयो, पा तोही दुलरायों।
जतन कियों जस मातु देवकी, किलकारी सुनि धायो।।
माखन मिश्री घर घर गोकुल, लखि चखि दहिया खायो।
भोर प्रात गैयन ले मोहन, जल यमुना लहरायो।।
काहें के छोड़ि गयो कछारी, रास द्वारिका आयो।
विनती करूँ बहुरि फिरि आओ, वृन्दावन अकुलायों।।
काहें मोहन रूठ गए हो, मुरली विरह बढ़ायो।
एक बार पुनि दरश दिखाओ, सुत मैया चित छायो।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
वाह वाह !
वाह वाह !
सादर धन्यवाद आदरणीय विजय सर जी