क्यों चाहा उसे
क्यों चाहा उसे
जो मोहब्बतों के काबिल न थी
आंधियों का जज़्बा थी वो
प्रेम का सागर न थी
हम समझते रहे वफ़ा का सैलाब
वो मोहब्बतों का साहिल न थी
गर किया होता प्यार
उसने भी मेरी तरह बेइंतहा
तो साथ होती हर कीमत पर
पर वो तो बस दर्द का दरिया थी
जिसने कुछ न दिया दर्द और आहों के सिवा
मैं तो यूँ ही भटकता रहा बेवजाह
अरे… मेरी तो वो मन्ज़िल न थी
मेरी तो वो मन्ज़िल न थी
#महेश
बहुत खूब !
आभार मान्यवर