लघुकथा : बिडम्बना
बाल श्रम उन्मूलन सप्ताह की कवरेज करके सहकर्मी राकेश के संग लौट रहा सुमित उमंग और जोश से लबरेज़ था।
” सरकार के इस कदम की जितनी प्रशंसा की जाए कम है । कम से कम भोले भाले मासूमों का बचपन तो न छीन पाएगा कोई अब। “
एक झोपड़ पट्टी के पास से गुज़रते हुए जमा भीड़ और एक फटेहाल स्त्री का उच्च स्वर में रुदन सुनकर वह रुक गया
” आग लग जावे इस सरकार को, अच्छा भला मेरा मुन्ना काम करके चार पैसा कमा लेवे था। पन सज़ा के डर से काउ ने बाए काम पर न रखो। का करता बेचारा ?पेट की आग बुझावे की खातिर चोरी कर बैठा, और कम्बखत पुलिस पकड़कर लै गई।अरे जब काम ही न मिले तो कोई चोरी न करे तो का करे ? “
कुछ पल पहले उन बाल श्रमिकों के लिए आर्द्र होता सुमित अब धड़ाधड़ भीड़ और उस महिला की फोटो खींचे जा रहा था। कल के समाचारपत्र के लिए एक नई खबर मिल चुकी थी।
— ज्योत्सना
बढिया !