लघुकथा : सुख
” ऐसे मायूस क्यूँ नज़र आ रहे हो हेमन्त ?”
” कुछ नहीं संजय-सोच रहा हूँ की आखिर सुख की परिभाषा क्या है ”
” तो क्या निष्कर्ष निकाला ?”
” तू तो सब जानता है -की बचपन कितना तंगी में गुज़रा-हम सब साथ थे-पर एक एक चीज़ के लिए तरसते थे-तब निश्चय किया की इतनी दौलत कमाऊँगा की जो चाहे हासिल कर सकूँ-और आज बेशुमार दौलत है मेरे पास ”
” तो फिर परेशानी का सबब क्या है ?”
” मैं यहाँ एकाकी बैठा हूँ और मेरा परिवार अपने अपने सुखों की तलाश में है ”
— ज्योत्सना
लघु कथा अछि लगी ,इंसान की यही तो विडंबना है की ना अमीरी में सुख ना गरीबी में .