मुक्तक/दोहा

दोहे

दोहे / शिव चाहर मयंक

मन्दिर मस्जिद के लिये,लगी जहाँ में आग।
सबकी अपनी बाँसुरी , सबके अपने राग।

जीवन भर करते रहे, हम उनका अपमान।
जिनसे हमको यश मिला, जिनसे है सम्मान।।

दोस्त वही है जो हमें, राह उचित दिखलाय।
सदगुँण का विस्तार हो, अवगुँण हमें बताय।।

दुख सुख का मेला लगा, सजा खूब बाजार।
मानवता का हो रहा, नित जग में ब्यापार।।

प्यासा तो प्यासा रहा, मिला उसे कब नीर।
जनता ब्याकुल रो रही, सुने न कोई पीर।।

सरगम सी आवाज थी, अब हैं कर्कश बोल।
कुर्सी मिलते ही खुली, नेता जी की पोल।।

जीवन की इस दौड ने कर डाला मजबूर।
खून पसीना एक कर, भूखा है मजदूर।।

उनका कोई घर नही, है हमसे ही आस।
पंक्षी प्यासे सोचते, बुझे कहाँ से प्यास।।

रब ने हम सबको दिया, जीवन का उपहार।
क्रोध मोह से क्यों भला, दूषित हो संसार।।

शिव चाहर मयंक
आगरा

शिव चाहर 'मयंक'

नाम- शिव चाहर "मयंक" पिता- श्री जगवीर सिंह चाहर पता- गाँव + पोष्ट - अकोला जिला - आगरा उ.प्र. पिन नं- 283102 जन्मतिथी - 18/07/1989 Mob.no. 07871007393 सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन , अधिकतर छंदबद्ध रचनाऐ,देश व विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित,देश के अनेको मंचो पर नियमित कार्यक्रम। प्रकाशाधीन पुस्तकें - लेकिन साथ निभाना तुम (खण्ड काव्य) , नारी (खण्ड काव्य), हलधर (खण्ड काव्य) , दोहा संग्रह । सम्मान - आनंद ही आनंद फाउडेंशन द्वारा " राष्ट्रीय भाष्य गौरव सम्मान" वर्ष 2015 E mail id- [email protected]