फैला प्रचलन गन्दा
चारों तरफ जगत में फैला, प्रचलन कितना गन्दा है।
पुतला फूँक रहे हैं लेकिन, रावण फिर भी जिन्दा है।
सीता रूपी बेटी कैसे,रोज यहाँ हर जाती है।
मानवता तक मानव की जाने कैसे मर जाती है।- 1
उस पर मेवा मिसरी चढती, जो पत्थर की मूरत है।
भूखे नित सोते देखे जिनमें भगवन की सूरत है।
राम नाम पर जिस दानी के, लंगर नित ही चलते हैं।
जाने क्यों माँ बाप उसी के, वृद्धाश्रम में पलते हैं।- 2
तन पर कपडे नही मगर दरगाह पर चादर पड़ती है।
मानव मारे जीव यहाँ नित, बली गाय की चढ़ती हैं।
निज मजहब की खातिर लाखों, लास जहाँ उठ जाती है।
लव जिहाद में फसकर क्यों लाखों बेटी लुट जाती हैं।- 3
चर्च हमेशाँ रोशन होकर, जग मग जग मग खिलता है।
लेकिन लाखों घर है जिनमे, दीपक भी ना जलता है।
मातृभूमि से पहले “चाहर”, मजहब को गर लायेगें।
मानव भी इस जग में बनकर, पत्थर ही रह जायेगें।-4
शिव चाहर मयंक
आगरा