कविता : ज़िन्दगी
ज़िन्दगी तूने दिए ,
ज़ख्म बहुत,
पर हौसला न मेरा ,
तोड़ पाई है ।
माना की हैं ,
दुश्वारियां बहुत ,
जीने की मैंने ,
कसम खाई है ।
शक्ति हूँ मैं ,
कमज़ोर नहीं ,
शूल चुनके मैंने ,
राह बनाई है ।
हर फ़िक्र से अब ,
आज़ाद हूँ ,
अपनी हस्ती मैंने ,
आजमाई है ।
— ज्योत्स्ना