मौरवी नरेश श्री वाघजी ठाकोर द्वारा ऋषि दयानन्द की प्रशंसा
ओ३म्
श्री वाघजी ठाकोर मौरवी राज्य वा रियासत के 17 फरवरी 1870 से 11 जून 1922 तक नरेश वा राजा रहे। महाराजा साहब अप्रैल, 1910 में लाहौर पधारे थे। वहां महाराजा से सनातन धर्म सभा का एक डेपुटेशन मिला और प्रार्थना की कि वे सतातनधर्मी होने के कारण दयानन्द के मत अर्थात् आर्यसमाज से सनातन धर्म की रक्षा करें। इसके उत्तर में महाराजा साहब ने जो कहा वह तथ्यपूर्ण समाचार फर्रूखाबाद से प्रकाशित ‘‘भारत सुदशा प्रर्वत्तक” के मई, 1910 अंक में प्रकाशित हुआ था। सनातन धर्म सभा के प्रतिनिधि मण्डल को महाराजा वाघजी ठाकोर ने कहा कि ‘‘आपका अभिप्राय किस दयानन्द से है? यदि आपका प्रयोजन उस दयानन्द से है कि जिसके जन्म स्थान का अभिमान मेरी रियासत को उपलब्ध है, तो आपकी बड़ी भूल है। उसने डूबते हुए सनातन धर्म को बचा लिया। यदि इस महान् पुरुष का जन्म न होता तो आज समस्त हिन्दू ईसाई और मुसलमान हो गए होते और आपकी वर्तमान सनातन धर्म सभा का नाम मात्र भी न रहता। मेरे हृदय में उस दयानन्द (30 अक्तूबर, सन् 1883 को दिवंगत) के लिए महती पूज्य बुद्धि है और मुझे अभिमान है कि उनके सम्बन्धी (कुटुम्बी) इस समय तक मेरी रियासत में बड़े–बड़ें पदों पर नियुक्त हैं।”
इस समाचार को देकर भारत सुदशा प्रवर्तक के सम्पादक ने अपनी टिप्पणी देते हुए लिखा कि ‘‘हमारे विचार में महाराजा साहिब की सम्मति से आर्यसमाज के नास्तिक और आस्तिक विरोधियों को लज्जा से मुख छिपा लेना चाहिए, जो ऋषि दयानन्द के जन्म स्थान आदि के विषय में अनेक प्रकार की मिथ्या जनश्रुति फैला रहे हैं।”
यह भी ज्ञातव्य है कि महर्षि दयानन्द की मौरवी नरेश श्री वाघजी ठाकुर से भेंट हुई थी जब वह राजकोट की यात्रा पर पधारे थे और राजकोट में 31 दिसम्बर, 1874 से 18 जनवरी, 1875 तक रहे थे।
उपर्युक्त पंक्तियों में मौरवी नरेश ने ऋषि दयानन्द जी के बारे में जो कहा है वह सर्वांश में सत्य एवं यथार्थ स्थिति प्रदर्शित करता है। पाठको के लाभार्थ यह वार्ता व ऐतिहासिक घटना प्रस्तुत कर रहे हैं। यह भी अवगत करा दें कि मौरवी नरेश का चित्र और इस मुद्रित समाचार की छाया प्रति आर्य विद्वान प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी द्वारा उर्दू से हिन्दी में अनुदित व उन्हीं के द्वारा सम्पादिक मास्टर लक्ष्मण आर्योपदेशक रचित महर्षि दयानन्द के जीवन चरित “मुकम्मल जीवन चरित्र महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती” में उपलब्ध है।
–मनमोहन कुमार आर्य
प्रिय मनमोहन भाई जी, अति सुंदर आलेख के लिए आभार.
मनमोहन भाई ,लेख अच्छा लगा ,मौर्वी नरेश के बारे में पहली दफा सुना लेकिन वोह धर्म के प्रति बहुत कुछ समझते होंगे . आप को तो मेरे बारे में मालूम ही है की धर्मों के चकर में इतना दिलचस्पी नहीं लेता ,फिर भी कुछ जान्ने की उत्सुकता जरुर रहती है . सनातन धर्म के बारे में सुना तो बहुत दफा है लेकिन मुझे पता नहीं की इस धर्म में किया इलगग बातें हैं और हाँ याद आया ,एक बर्मूं समाज भी सुना है ,किया आप बताने की ज़हमत उठाएंगे की इन की टीचिंग किया है .