ग़ज़ल
बात थी छोटी, फ़साना हो गया ।
प्यार का दुश्मन जमाना हो गया ।
दौरे उल्फ़त में हुआ कुछ भी नहीं
जो था अपना, बस बिगाना हो गया ।
जिस शहर में कोई भी अपना नहीं
उस शहर में आबु दाना हो गया ।
जिंदगी की राह पर करके सफर
एक बच्चा फिर सयाना हो गया ।
अब नहीं परवाह उनको है मिरी
प्यार शायद अब पुराना हो गया ।
आप का होना रिहा मुमकिन नहीं
दिल हमारा जेलखाना हो गया ।
— धर्म पाण्डेय
बहुत खूब पान्डेय जी