लघुकथा – अमीर बेटी
आज माँ की तेरहीं के भोज का आयोजन था। माँ के परलोक गमन से शोकमग्न चारों बहु बेटे काम में व्यस्त थे। गाँव में माँ के स्नेहिल स्वभाव से सराबोर दूर पास के सभी रिश्तेदार और परिचित आये थे। वे सब महानगर दिल्ली में अमीर परिवार में ब्याही बेटी सुंदरी जो दो चार साल में एक ही बार आती थी का इन्तजार कर रहे थे। दोपहर आने को आई थी मगर अभी तक ना तो उसका फोन आया था और ना ही उसकी कोई खबर। शाम ढ़ले वो आई तो मगर उसकी लम्बी बड़ी सी गाड़ी गांव की उस तंग गली में घुस ही नहीं पा रही थी। सड़क के किनारे गाड़ी लगा कर सम्हल सम्हल कर रुके रुके से रखते कदमों से माथे का पसीना पौंछते हुए कीमती वस्त्रों और भारी गहनों से लदी फदी सुंदरी ने आँगन में प्रवेश किया। उसको देख कर सभी चेहरों पर राहत पसर गई।
“बड़ी देर हो गई सुंदरी,कहाँ रह गयी थी ” ? बड़के भैया ने स्नेह से पूछा।
” अरे भैया मुझे गाँव आना बिलकुल भी नहीं भाता ,पूरे रास्ते ऊबड़ाते – खबड़ाते आए हैं ,..गाँव की इस सड़क पे तो मेरे शरीर की सब चूलें हील जाती हैं ,… माँ की तेरहीं ना होती तो ना आती ,… अगली बार तभी आऊँगी जब सड़क अच्छी बन जाएगी ” कमर पकड़ते हुए सुंदरी कराही।
” हैंअ अ अ ” चुपचाप ही सुंदरी के गहनों और कपड़ों में लिपटे शरीर में घर की बेटी की आत्मा तलाशने में मशगूल लोग अब भौंचक्के से उसका मुँह ताकने लगे।
— मँजु शर्मा ( पूणे ) ०८-०४-२०१६
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ऐसी बेटी के क्या कहने!
वाह ,बेटी हो तो ऐसी हो !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!