लघुकथा

लघुकथा — नए नियम

सीमा पार से पड़ौसी देश के सैनिक आतंकियों का लबादा पहन कर धोखे से हमारे कुछ सैनिकों का अपहरण करके ले गये। दस दिन बाद उन्हें अमानवीय यातना दे कर ,उनके सिर विहीन धड़ चुपचाप भारतीय सीमा में फेंक दिये। चंद मिनटों में ही ये ह्रदयविदारक समाचार पूरी दुनिया में आग की तरह फैल गया। हर देश भक्त दुःख में डूबा पड़ौसी सेना की इस
कायराना, नीच और कमीनी हरकत से आक्रोशित था। मिडिया भी अपने अपने तरीके से इस खबर को दिन भर प्रसारित कर रही थी , नेताओं और समाज के नामचीन व्यक्तियों के बयान दिखा रहे थे। सत्ता के नशे में चूर एक मंत्री जी बड़ी बेशर्मी से ब्यान दे रहे थे —
” सीमा पर हमारे सात सैनिक मार डाले गये हैं , हमें उन से और उनके परिवार से सहानुभूति है , .. लेकिन ये लोग फौज में मरने के लिये भर्ती होते हैं , मरना और मारना इनका काम ही है ,जो सात सैनिक मरे हैं उनके परिवार को इस के लिए यथोचित मुआवजा दे दिया जायेगा ।”

दो दिन बाद ही चुनाव आयोग के समक्ष — ” मेरे वतन भारत में चुनाव लड़ने के इच्छुक व्यक्ति के परिवार के कम से कम एक सदस्य का भारतीय फौज में भर्ती होना अनिवार्य किया जाये “, की माँग करती अर्जियों की बौछार होने लगी, जो महीनों तक जारी रही। चुनाव आयोग ने भारी जनभावना को देखते हुए अर्जियाँ स्वीकार कर लीं और अगले चुनावों के लिए ये नियम भी बना दिया। चुनावों की तिथियों की घोषणा हुई तो , उम्मीदवारों के नामांकन हेतु दफ्तर में तैनात कर्मचारीगण सारे दिन हाथ पर हाथ धरे खाली बैठे मक्खी मारते रहते। अंतिम तारीख को आखिर दो – तीन बन्दे आ ही गए ।

— मँजु शर्मा (पुणे) ०८-०२-२०१५

2 thoughts on “लघुकथा — नए नियम

  • लीला तिवानी

    सहज रूप से वास्तविकता से परिचित कराने के लिए आभार.

  • मंजू जी , आप ने इन देश भगतों का असली चेहरा दिखा दिया , यह कथा नहीं ,यह हमारे देश के नेताओं का असली रूप है

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