कविता

“पद”

 

बनवारी यह तोरी माया
साथी सखा तबहिं मन भाए, जब हो तुमरी दाया।
लपट कपट काके मन नाहीं, दिय हरि कमली काया।।
करम धरम की बेड़ी लागी, तापर प्रेमी छाया
लोभ क्रोध चिंता का ताला, चाभी मोहक माया।।
कस खोलूं आपन दरवाजा, बिनु आहट के भाया
कुण्डी मोर बजाओ मोहन, दरशन दो हरि राया।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

4 thoughts on ““पद”

  • लीला तिवानी

    कुण्डी मोर बजाओ मोहन, दरशन दो हरि राया, अति सुंदर.

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीया, हार्दिक आभार

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीया, हार्दिक आभार

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