“पद”
बनवारी यह तोरी माया
साथी सखा तबहिं मन भाए, जब हो तुमरी दाया।
लपट कपट काके मन नाहीं, दिय हरि कमली काया।।
करम धरम की बेड़ी लागी, तापर प्रेमी छाया
लोभ क्रोध चिंता का ताला, चाभी मोहक माया।।
कस खोलूं आपन दरवाजा, बिनु आहट के भाया
कुण्डी मोर बजाओ मोहन, दरशन दो हरि राया।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
कुण्डी मोर बजाओ मोहन, दरशन दो हरि राया, अति सुंदर.
सादर धन्यवाद आदरणीया, हार्दिक आभार
सुंदर
सादर धन्यवाद आदरणीया, हार्दिक आभार