“कुंडलिया छंद”
आँधी चली कतेक से, उड़े धूल आकाश
आँखों में है किरकिरी, मलिन पंथ प्रकाश
मलिन पंथ प्रकाश, न दिखे निचे गड्ढ़ा
आई कमरन में चोट, गिरि कराहे बुड्ढ़ा
कह गौतम कविराय, उड़ाए झोंका पाँती
बरष असाढ़े जाय, उड़ी यह बैरी आँधी॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी