कविता
तुम तो व्यस्त हो जाते हो
दुनियां के मेले मे
कभी दफ्तर में तो कभीं
कारोबार के झमेले मे
पर मैं क्या करूँ
कितना धीरज धरूँ ं
मेरी दुनिया तो
सिमटी है तुम्ही तक
जिस राह चलो मेरी
मन्ज़िल है वही तक
तुम्हें क्या मालूम
तुम्हारे इंतज़ार में
एक एक पल
कैसे गुजरता है
गुजर कर भी
गुजरा ना हो
ऐसे गुजरता है
देखती रहती हूँ
नज़रें गड़ाए घड़ी
अब आओगे तुम
देखूँ तुम्हारी राह खड़ी
तुम आते हो जब
तुम्हे सामने देखकर
भूल जाती हूँ सारे गिले
तुम्हें मुस्कराते देखकर
तुम्हारे माथे की एक शिकन
कर देती है बेचैन मुझे
और तुम्हारी एक हंसी
भुला देती है हर दर्द मुझे
फिर एक स्पर्श तुम्हारा
भुला देता है थकन सारा
इंतजार की सारी बेकरारी
और झुंझलाहट सारा
तुम तो सो जाते हो
मीठे स्वप्नों में खो जाते हो
और मैं निहारती रहती हूँ
ऐसे ही पहरों
जैसे तुम चंदा हो मेरे
और मैं तुम्हारी चकोर….
— सुमन शर्मा