कविता : बेटियां
माँ की प्यारी, पिता की लाडली
होती है बेटियां!
बहुत प्यारी लगी
पहली बार जब
अपने हाथ से
पकाकर खिलाई
उन्होंने रोटियां !
आज बेटों से कम नहीं
किसी भी जगह
अपनी मेहनत से भी
कमाकर, माँ-पिता को
पालती भी हैं बेटियां,
बीमार पिता के लिए
रातभर जागती भी हैं,
माँ के लिए भी
सखी से भी प्यारी सखी
ऐसी ही होती हैं
आजकल कल की
हमारी प्यारी बेटियां!
कल पिता खड़े होते थे
बनकर उनकी छत,
बचाने को उन्हें
दुनियां की बुरी नजर से,
आज पिता की झुकती
कमर का सहारा बन
वे बनी हैं उनकी लाठी
जिसने अंगुली पकड़
चलना सिखाया,
आज उस ही माँ
की ऐनक बनी हैं
ऐसी ही प्यारी
होती हैं बेटियां!
घर की रौनक,
आँगन की तुलसी
और बाहर
हमारी शान होती हैं बेटियां !
— नीता सैनी, दिल्ली