दाहिना हाथ
मिश्रा जी उम्मीद लगाए बैठे थे कि गुप्ता जी के रिटायरमेंट के बाद वे प्रांतीय संपादक बन जाएंगे। गुप्ता जी ने उन्हें आश्वासन भी दे रखा था, ” आने दीजिए समूह संपादक जी को, मैं बात करूंगा। आप ही इस कुर्सी के योग्य हैं।”
” गुप्ता जी, आप अपनी कुर्सी के योग्य किसे समझते हैं ?” विदाई समारोह में आए समूह संपादक ने गुप्ता जी से राय ली।
” एक यादव लड़का है। बड़ा ही मेहनती। मैं चाहता हूं कि उसे ही मेरा काम दिया जाए।”
” हूं … ! मिश्रा जी क्यों नहीं ? वे तो आपका दाहिना हाथ रहे हैं।”
” नहीं, साहब। वे इस पद के कतई योग्य नहीं हैं। मैं तो उन्हें झेलता रहा। वे किसी काम के नहीं हैं। मैं तो कहूंगा कि उन्हें प्रांतीय से हटाकर ब्यूरो में कर दिया जाए। बाकी आपकी जैसी इच्छा। ”
— नीता सैनी, दिल्ली