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वेदों में एक ईश्वर के अनेक सार्थक नाम है : पं. इन्द्रजित् देव

ओ३म्

गुरुकुल पौंधा का तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव आज आरम्भ-

आर्य जगत के विख्यात विद्वान पं. इन्द्र जित् देव, यमुनानगर आजकल गुरुकुल पौंधा, देहरादून के तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव में पधारे हुए हैं। यमुनानगर से ही आर्यजगत के विख्यात वयोवृद्ध भजनोपदेशक श्री ओम् प्रकाश वर्म्मा जी भी सपत्नीक उत्सव में पधारे हुए हैं। श्री वर्म्मा जी ने गुरुकुल परिसर में अपने लिए सभी सुविधाओं से युक्त एक कुटिया बनाई हुई है और यहां प्रत्येक वर्ष उत्सव पर आते हैं। स्वामी प्रणवानन्द जी के अनुरोध पर एक बार चौधरी मित्रसेन भी सपत्नीक गुरुकुल पधारे थे और तब इसी कुटिया में रहे थे। हमारा कल व आज का अधिकांश समय श्री इन्द्रजित् देव जी और आर्यजगत के विख्यात विद्वान, भजनोपदेशक और एक हजार से अधिक गीतों के लेखक पं. सत्यपाल पथिक जी के पवित्र सान्निध्य में व्यतीत हुआ।

आज 3 जून, 2016 को गुरुकुल में आयोजित सत्यार्थ सम्मेलन में पं. इन्द्रजित् देव जी का प्रवचन हुआ। आपने सत्यार्थप्रकाश के प्रथम समुल्लास में ईश्वर के 108 नामों की चर्चा कर अपने विचार प्रस्तुत किये। आपने चर्चा के आरम्भ में कहा कि श्री पं. विष्णु लाल पण्डया परोपकारिणी सभा, अजमेर के मंत्री थे। उनके प्रश्न करने पर महर्षि दयानन्द ने अपने उत्तर में उन्हें कहा था कि एक भाषा, एक ग्रन्थ, एक उपास्य देव, तथा एक सुखदुःख जब तक नहीं होगा तब तक मनुष्यों में परस्पर एकता स्थापित नहीं हो सकती। विद्वान वक्ता ने एकं सदविप्रा बहुधा वदन्ति’ का उल्लेख कर कहा कि ईश्वर एक है परन्तु लोग उसका वर्णन अनेक प्रकार से करते हैं। उन्होंने कहा कि सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में ईश्वर के 108 नामों का उल्लेख है। ईश्वर के यह नाम उसके निज नाम ओ३म्’ से इतर हैं और यह सब ईश्वर के गुण, कर्म व स्वभाव सहित जीवात्मा से संबंधों के सूचक हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वेदों के शब्द रूढ़ नहीं अपितु यौगिक हैं। विद्वान वक्ता ने कहा कि यौगिक शब्दों के अनेक अर्थ होते हैं। श्री इन्द्रजित् देव ने गीता का उल्लेख कर अर्जुन के अनेक नामों गुडाकेश, कौन्तेय, अजान बाहु आदि की चर्चा की और कहा कि अर्जुन के घुंघरालु बालों के कारण कृष्ण जी ने उसे गुडाकेश नाम से सम्बोधित किया था। उन्होंने श्रोताओं को बताया कि कि गीता में कृष्ण जी के भी अनेक नामों का उल्लेख हुआ है जिनमें वार्ष्णेय तथा माधव आदि कई नाम हैं। एक ही मनुष्य के अनेक नाम उसके गुणों व संबंधों के अनुसार होते है। उसी को उसकी पत्नी पतिदेव, माता-पिता पुत्र, बच्चे पिता, व अन्य संबंधी भाई, चाचा, ताउ, मामा, मौसा, फूफा, दादा, पौत्र आदि अनेक नामों से पुकराते हैं। विद्वान वक्ता ने प्रश्न किया कि जब सांसारिक लोगों के इतने नाम व सम्बोधन हो सकते हैं तो वेदों में एक ईश्वर के लिए गुण व सम्बन्धों के कारण अनेक नाम क्यों नहीं हो सकते? उन्होंने कहा कि ईश्वर में अनन्त गुण होने के कारण उसके गुणवाचक नाम सहस्रों व उससे भी अधिक हो सकते हैं। श्री इन्द्रजित् जी ने पौराणिकों की बुद्धि पर आश्चर्य व्यक्त कर कहा कि वह वेदों में आये ईश्वर के अनेक नामों को स्वीकार न कर उन उन नामों से अनेक ईश्वरों का होना स्वीकार करते हैं। पौराणिकों के इस व्यवहार पर उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि ईश्वर का निज नाम ओ३म् है।

श्री इन्द्र जित देव ने पौराणिकों द्वारा विवाह में नवग्रहों की पूजा का उल्लेख किया और कहा कि इन नव ग्रहों में एक देव गणेश होते हैं। कहा जाता है कि बिना गणेश की पूजा के विवाह सम्पन्न नही हो सकता। इस पर विद्वान वक्ता ने प्रश्न किया कि गणेश जी के पिता शिव व शिव के अन्य अनेक पूर्वजों सहित उनके जन्म के पूर्व के लोगों का विवाह बिना गणेश पूजा के कैसे सम्पन्न हुआ था? गणेश शब्द का अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा कि गणेश व्यक्ति वाचक शब्द नहीं अपितु यह गण$ईश है अर्थात् जनता के समूह का स्वामी अर्थात् परमेश्वर है। पौराणिकों द्वारा इस शब्द का रूढ़िवादी अर्थ करना अनुचित व भ्रामक है।

आर्यसमाज के विद्वान आचार्य इन्द्रजित् देव जी ने कहा कि महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश में ईश्वर के 108 नामों का उल्लेख कर उनका अर्थ बताया किया है। इसका प्रयोजन है कि यह सब नाम एक ही ईश्वर के उसके भिन्न भिन्न गुणों सम्बन्धों के कारण से हैं। उन्होंने कहा कि ईश्वर एक है जो सच्चिदानन्द स्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, सर्वज्ञ आदि गुणों वाला है। केवल वही ईश्वर सभी मनुष्यों का उपास्य देव है। यह कह कर विद्वान वक्ता ने अपने वक्तव्य को विराम दिया।

श्री इन्द्र जित् देव जी से हमारी भेंट वैदिक साधन आश्रम तपावेन, देहरादून के 11 मई से 15 मई, 2016 तक आयोजित उत्सव पर भी हुई थी। उनकी प्रेरणा से हमने पं. अयोध्या प्रसाद रिसर्च स्कालर जी पर एक लेख लिखा। एक माह से कम समय में उनसे व पण्डित सत्यपाल पथिक जी दो बार भेंट होना हमें अपना सौभाग्य प्रतीत होता है। पथिक जी से मार्च, 2016 के महीने में ऋषि दयानन्द जी की जन्म भूमि टंकारा में भी भेंट हुई थी। गुरुकुल में उनसे मार्च-जून के बीच तीन बार भेंट होना और पथिक जी द्वारा हमें अत्यन्त स्नेह देना ईश्वर की हम पर गहरी कृपा प्रतीत होती है। हमने पथिक जी व पं. इन्द्रजित् देव जी से जो संस्मरण सुने हैं, उन्हें हम निकट भविष्य में प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे। इति।

मनमोहन कुमार आर्य

2 thoughts on “वेदों में एक ईश्वर के अनेक सार्थक नाम है : पं. इन्द्रजित् देव

  • लीला तिवानी

    प्रिय मनमोहन भाई जी, पूरा आलेख अति सुंदर लगा. अर्जुन के घुंघराले बालों के कारण कृष्ण जी ने उसे गुडाकेश नाम से सम्बोधित किया तथा गणेश व्यक्ति वाचक शब्द नहीं अपितु यह गण$ईश है अर्थात् जनता के समूह का स्वामी होना भी सुंदर व सार्थक लगा.

    • मनमोहन कुमार आर्य

      नमस्ते एवं धन्यवाद आदरणीय बहिन जी। आपको लेख पसंद आया इन शब्दों को पढ़कर प्रसन्नता का अनुभव हुआ। सादर।

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