कुछ लघुकथाएं
चरित्र
संस्कार शाला के प्रधान बोले, ‘‘देखिए, हमारे गुरूजी ने यह चरित्र निर्माण की पुस्तक लिखी है, आप को इसी पुस्तक में से बच्चों को समझाना होगा, अलग से अपना ज्ञान नहीं बखानेंगे‘‘
प्रशिक्षु जयन्त ने विनम्रता से कहा, ‘‘श्रीमान चरित्र तो हममें ही नहीं है, मात्र भाषण देने से क्या होगा? मैं तो इन बच्चों की आदतें सही कर पाया, सही रास्ते पर जीवन जीने के नियम बतला पाया, यही बहुत होगा।‘‘
विधवा
संजना बोली, ‘‘मम्मीजी, करवा चैथ की पूजा करवाइए ना‘‘ मम्मीजी बोली, ‘‘बहू में पूजा में कैसे बैठ सकती हूँ, अपशकुन होगा‘‘ संजना बोली, ‘‘नहीं मम्मीजी, मां मां होती है, न सुहागन, न विधवा, करवा चौथ की पूजा में अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद तो मैं आप से ही लूंगी, पुरानी सोच छोड़िए मम्मीजी, जल्दी आइए पूजा में‘‘ भीगी पलकों से मम्मीजी संजना की पूजा करवा रहीं थीं।
स्नेह
पांच वर्षीया नन्ही गुड़िया मम्मी से पूछती, ‘‘मम्मी, आशीष अंकल हमेशा मेरे लिए चाकलेट गिफ्ट लेकर आते हैं, मैं उनके लिए क्या कर सकती हूँ?‘‘ मम्मी बोली, ‘‘तुम अभी बहुत छोटी हो, जब बड़ी हो जाए, तब जो मन में हो वह करना” आशीष अंकल जब भी घर आते, तो कहती, ‘‘अंकल, यहीं पर खाना खाकर ही जाऐंगे, अंकल को खाना खिलाए बिना मैं जाने ही नहीं दूंगी।‘‘ निर्मल स्नेह से आशीष की पलकें भीग जाती.
राखी
नवम्बर महीने में पाठिका मनीषा दीदी के यहां से जब कैलाश राखी बंधवा कर आया, तो लौटते में दो तीन दिन मनीषा दीदी की मम्मी के यहां भी रूकना था, वे बोली, ‘‘अभी कौन सा राखी का मौसम है?‘‘ कैलाश बोला, ‘‘नानीजी, दीदी की स्नेह ममता प्यार भरी राखी तो मेरे लिए अनमोल आशीर्वाद है.‘‘ जब तक राखी का धागा स्वतः ही नहीं गल गया कई महीनों तक कैलाश की कलाई में वह राखी बंधी रही।
— दिलीप भाटिया
प्रिय दिलीप भाई जी, सभी लघुकथाएं सुंदर व सार्थक लगीं. आभार.