कविता

अक्सर धोखा उन्ही से खायी

मै अक्सर धोखा उन्ही से खायी
जिन्हे मै  रिश्तो में खास पायी
ये झुठ मुठ के बनाम रिश्ता
लगता है जैसे हो कोई फरिश्ता
आखिर साथ वही है देता
जिससे होता खुन का रिश्ता
हजारो मे कहीं एक ही मिलते
जो मेरा हर दुःख दर्द समझते
बाकि सब तो नाम के मरते
जिनका कोई अर्थ ही न निकलतें|
    निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४