कविता

किसे सुनाऊँ

किसे सुनाऊँ मै अपना दुःख दर्द
कौन है मेरा सुननेवाला करूण पुकार
छुपा कर दिलो मे हजारो जख्म
मै अन्दर ही अन्दर घुट मरती हूँ

नही मिला कोई मरहम लगाने वाला
जो भी मिलते नमक छिडकते जाते
और भी जख्म  गहरा होता जाता
मै उसे भी  छुपाये बैठी रही

अब मेरा पथ भी पथरीली हो गयी
मेरे पैरो तले ही फूल कॉटा हो गयें
मंजील भी अब कोशो दूर दिखे
ये देख मेरा मन विचलीत हुआ

ये हँसी भी अधरो से गायब हो गयी
रोने के सिवाय अब ना कोई सहारा मिले
अपने भी अब बेगाना लगने लगे
और मै उसे अपनाने मे लगी रही

जीवन मे उतार चढाव कम न होते
अपनो को ही दुश्मन बन गले मिलते देखे
आगे निकलने के होड मे सभी
अपनो को ही गिराते  मिलें|
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४