कवितापद्य साहित्य

जीवन का दौर —“मौन”

कुछ लिखने को जी करता है,
उन्हें अपना कहने को जी करता है,
रात आती है सुलाने लगती है,
कोई बात अपना दिल कचोटी है,
इस बात का अहसास होता जबतक,
लोग प्यार हुआ है यही कहते हैं ।
“मौन” दीवानापन बहुत याद आता है,
पुराने दोस्तों कभी कभी मिल जाया करो।
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जीवन का दौर अब हो चला है प्रौढ़,
जो कुछ भी था तनहाई में हो गया गौढ़।
दीवारों से दोस्ती कर ही ली है जहाँ में,
तन मन दोनों अब होने लगा है “मौन”।
क्या अब भी कोई तूफ़ान संभाला जायेगा ?
धीरे से अब धड़कन भी होने लगी हैं “मौन”।
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