कविता

तुम बिन

कल्पना करती हूँ कभी
जो तुम बिन मैं जीवन की

सूरज उगता है फिर भी
सवेरा ही नही होता
कहीं खो जाता है ये चाँद
कोई तारा नही होता।

कल्पना करती हूँ कभी
जो तुम बिन मैं जीवन की

समंदर सूख जाते हैं
कहीं बारिश नहीं होती
फूल मुरझा जाते हैं सब
कली कोई नही खिलती

कल्पना करती हूँ कभी
जो तुम बिन मैं जीवन की

हवा चलती तो है लेकिन
महक उसमें नही होती
सब रंग बेरंग होते हैं
चमक उनमें नही होती

कल्पना करती हूँ कभी
जो तुम बिन मैं जीवन की

आसमां के सिरे सारे
खुल जाएं धरती से जैसे
ना अम्बर होता है सिर पे
ना पैरों में जमीं होती

कल्पना करती हूँ कभी
जो तुम बिन मैं जीवन की

आँखें बेनूर लगती हैं
लगे सांसे मुझे थमती
दिल तो होता है लेकिन
धड़कन ही नही चलती

कल्पना करती हूँ कभी
जो तुम बिन मैं जीवन की

तुम बिन कुछ नहीं हूँ मैं
होकर भी नहीं होती
ज़िन्दगी नाम की होती है
मैं ज़िंदा नही होती

कल्पना करती हूँ कभी
जो तुम बिन मैं जीवन की
ज़िन्दगी नाम की होती है
मैं ज़िन्दा नही होती ।

-सुमन शर्मा

सुमन शर्मा

नाम-सुमन शर्मा पता-554/1602,गली न0-8 पवनपुरी,आलमबाग, लखनऊ उत्तर प्रदेश। पिन न0-226005 सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें- शब्दगंगा, शब्द अनुराग सम्मान - शब्द गंगा सम्मान काव्य गौरव सम्मान Email- [email protected]