शिशुगीत

शिशुगीत – १८

१. बादल

बादल गरजे जोर से
मुझे डरा दे शोर से
आते ही बरसात के
दिखने लगता भोर से

२. बिजली

चम-चम, चम-चम चमक रही है
मेघों में ही दमक रही रही है
इसका एक इशारा पाते
हवा मस्त हो गमक रही है

३. बाढ़

बीता महिना जेठ का
चढ़ आया आषाढ़ है
चिन्ता करते लोग कुछ
आनी फिर तय बाढ़ है
चलो अभी से ध्यान दो
जिससे कम नुकसान हो

४. कीचड़

बरखा आई, कीचड़ पसरा
गंदा होता गाँव जी
चलें साफ कर दें इसको हम
वर्ना धँसने पाँव जी

५. संतोष

कल आई थी जो आँधी
छप्पर उड़ा पड़ोस का
चलो मदद कर दें उनकी
काम यही संतोष का

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन