कविता

हा इसी पलको पर

हा इसी पलको पर
कभी सजायी थी
हजारो ख्वाब
आज टूट कर बिखर गये
मेरे सारे ख्वाहिशे
जब तु ही नही दिया साथ
तो ये ख्वाब क्या देंगे
हा एक चीज तुमने दिया है
वो भी इसी पलको के नीचे
ऑसुओ का भण्डार
जो छिपाये रहती हूँ
कभी निकलने नही देती
क्योकि कही इन्ही
ऑसुओ के साथ
तेरी यादें न बह जायें|
     निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४