हम जब सो रहे होते हैं तो हमारे प्राणों को परमात्मा ही चलाता हैः स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती
ओ३म्
श्रीमद् दयानन्द ज्योतिर्मठ आर्ष गुरुकुल पौंधा, देहरादून का तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव 3 जून 2016 को आरम्भ हुआ। इस दिन सामवेद पारायण यज्ञ के बाद वैदिक परम्पराओं के अनुरू़प ‘‘ओ३म् ध्वज” का आरोहण किया गया। इस अवसर आर्यजगत की प्रमुख विभूतियां सम्मिलित थीं। इस अवसर पर स्वामी चित्तेश्रानन्द सरस्वती जी ने आर्य बहिनों व भाईयों को सम्बोधित किया। उनके इस अवसर पर व्यक्त किये गये विचारों को अत्यन्त उपयोगी जानकर हम पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। हम अपनी ओर से इतना ही कहेंगे कि स्वामीजी ने जो कहा उसका एक एक अक्षर सत्य है। हमें व अन्य सभी को भी इस पर विचार कर इसे स्वीकार करना चाहिये और इसी के अनुरूप अपना आचरण निश्चित करना चाचहिये।
स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती ने कहा कि ईश्वर हमारे परम हितकारी सदा से हैं। ईश्वर से हमें अनादिकाल से सब कुछ मिलता आ रहा है। संसार व प्राणी मात्र का एक ही रचयिता परमेश्वर हैं। मनुष्य शरीर के सभी अंगों का उल्लेख कर स्वामी जी ने कहा कि इनका रचयिता व पोषक परमात्मा ही है। स्वामी जी ने कहा कि जब हम सो रहे होते हैं तो हमारे प्राणों को परमात्मा ही चलाता है। उन्होंने कहा कि भूमि भगवान की है तथा इस पर जल, वायु, अग्नि, आकाश, अन्न, दुग्ध आदि सभी पदार्थ परमात्मा के बनाये हुए हैं। उसी की कृपा से हमारा शरीर व जीवन चल रहा है। भगवान ने हमें ज्ञान-इन्द्रियां व कर्मेन्द्रियां दी हैं जिससे हम सुख पाते हैं। ईश्वर की कृपा से हमें मनुष्य योनि मिली है। हम चिन्तन कर सकते हैं। मनुष्य जीवन अपने आप को जानने के लिए है। हमें आवागमन से छूटने का अवसर मिला है। हमारी जीवन यात्रा पूर्व जन्मों से भी पूर्व कभी मोक्ष अवधि के समाप्त होने पर आरम्भ हुई है। हमें परमात्मा को जानना है तथा विवेक व ज्ञानपूर्वक जीवन को जीना है। हमें यह ध्यान रखना है कि हम शरीर नहीं अपितु जीवात्मा हैं। शरीर पैदा होता और नष्ट होता है परन्तु आत्मा न पैदा होती है और न नष्ट ही होती है। हमें जीवन को पवित्रता से जीना है। जीवन के एक एक क्षण का उपयोग करना है। परमात्मा हमारा निकटतम है। जीवात्मा और ईश्वर का व्याप्य व्यापक सम्बन्ध है। उसे जानने व अनुभव का हमें प्रयास करना है।
-मनमोहन कुमार आर्य
प्रिय मनमोहन भाई जी, अति सुंदर. जब हम सो रहे होते हैं तो हमारे प्राणों को परमात्मा ही चलाता है, जगने पर ही हमें पता चलता है, कि हम ज़िंदा हैं.
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद बहिन जी। लेख वा प्रवचन की बातें ऐसी हैं जो पूर्ण सत्य है परन्तु हम इधर उधर की बातों में ही व्यस्त रहते हैं और इन पर किसी का ध्यान ही नहीं जाता। सादर।