मैं ब्रह्म को जानता हूं और उसे जानकर मनुष्य मृत्यु से पार जा सकता है: अजित कुमार शास्त्री
ओ३म्
श्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल पौंधा, देहरादून के सतरहवें तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव के प्रथम दिवस के अपरान्ह सत्र में 3 जून, 2016 को वेदवंदांग सम्मेलन सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन के प्रथम वक्ता थे श्री अजित कुमार जो गुरुकुल के ही पूर्व ब्रह्मचारी हैं और अब दिल्ली के एक महाविद्यालय में प्रवक्ता है। उनका सम्बोधन उपयोगी होने से प्रस्तुत कर रहे हैं।
श्री अजित कुमार शास्त्री ने अपने सम्बोधन के आरम्भ में श्रोताओं से प्रश्न किया कि जीवन में अच्छे विचार सुनकर परिवर्तन क्यों नहीं होता? उन्होंने कहा कि आपने अपने घर पर सोचा कि हम पौंधा के गुरुकुल में जायें। परिणाम सामने है कि आप यहां बैठे हुए हैं। उन्होंने पूछा कि क्या आपने वेद या अपने आप को जानने का प्रयत्न किया है? उन्होंने कहा कि क्या कारण है कि हमारा सुना व पढ़ा हुआ हमारे जीवन में उतर नहीं पाता। हम जो उपदेश व प्रवचन आदि सुनते हैं वह हमारे जीवन से जुडता नहीं है? विद्वान वक्ता ने कहा कि जब तक हम सुनी हुई अच्छी बातों को अपने जीवन का लक्ष्य नहीं बनायेंगे तब तक सुनने का कोई लाभ होने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि वेदों की यह मान्यता है कि हमारे जीवन का कोई सार्थक एवं महत्वपूर्ण लक्ष्य है। उन्होंने श्रोताओं से पूछा कि क्या हमने कभी यह विचार किया है कि हमारे जीवन का साध्य क्या है? सूक्ष्म शरीर और संस्कार मनुष्य की पूर्व जन्म में मृत्यु होने पर साथ आते हैं और इस जन्म में मृत्यु होने पर साथ जायेंगे।
वेदों के अनुसार हम संसार में न धन, न यश और न परिवार को बढ़ाने आये हैं। हमारे जीवन का लक्ष्य मुक्ति वा मोक्ष है जिसके लिए हमें प्रयत्न करनर है। ब्रह्मचारी अजित कुमार आर्य ने कहा कि हमें हमारा शरीर ईश्वर से मिला है जो एक गाड़ी के समान है जिसके द्वारा हमें मोक्ष धाम पर पहुंचना है। उन्होंने कहा कि जब हमें अपने जीवन का लक्ष्य मोक्ष है, समझ में आ जायेगा तब हमें इसके लिए प्रयत्न करेंगे। इसी क्रम में श्री अजित जी ने यजुर्वेद के प्रसिद्ध मन्त्र ‘वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्। तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्यः पन्था विद्वद्यतेऽयनाय।।‘ का उच्चारण किया। उन्होंने बताया कि इस मन्त्र में कहा गया है कि मैं ब्रह्म को जानता हूं। उसे जानकर मनुष्य मृत्यु से पार जा सकता है। श्री अजित कुमार आर्य ने कहा कि हमें अपने आत्म तत्व अर्थात् अपने आप को जानना है। इसे जानने का मार्ग हमें वेद बताता है। उन्होंने कहा कि आप अपने लक्ष्य को जानने के लिए तैयार हो जाइये। अपने जीवन के लक्ष्य को जानिये और उसे प्राप्त करने का प्रयत्न कीजिये। इसी के साथ आर्य विद्वान अजित कुमार जी ने अपनी वाणी को विराम दिया।
हम आशा करते हैं कि पाठक इन विचारों को पसन्द करेंगे और इससे लाभान्वित होंगे।
-मनमोहन कुमार आर्य
प्रिय मनमोहन भाई जी, अति सुंदर. हमें अपने आत्म तत्व अर्थात् अपने आप को जानना है. मन तैयार होगा, तो साधन भी मिल ही जाएगा.
प्रिय मनमोहन भाई जी, अति सुंदर. हमें अपने आत्म तत्व अर्थात् अपने आप को जानना है. मन तैयार होगा, तो साधन भी मिल ही जाएगा.
नमस्ते आदरणीय बहिन जी। उत्तम प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद स्वीकार करें। ईश्वर हमारा साध्य है और योग, उपासना एवं यज्ञ आदि इसके साधन। दर्शन कहते हैं कि मनुष्य का मन ही उसके बन्धन और मोक्ष का कारण है। वस्तुतः हमें मन को ही वश में करना है। इसके लिए प्राणायाम आवश्यक बताया गया है। यह सब होगा तो ईश्वर हमें मिल सकते हैं। आपका हार्दिक धन्यवाद। सादर।