“दोहे”
पशु पंक्षी की बोलियाँ, समझ गया इंसान
निज बोली पर हीनता, मूरख का अभिमान।।-1
विना पांव चलते रहे, प्रीति रीति अरु नाव
लहर लाग लग डूबते, दे जाते बड़ घाव ।।-2
हरषित मन बैठा रहा, चारा डाले सोच
आएगी मछली बड़ी, खा जाऊंगा नोच।।-3
कदम कुहाणी पर धरें, बहुत मनाए खैर
धार न परखे चातुरी, मीत हीत अरु गैर।।-4
निंदा भली न पारकी, मोह भली नहि आप
सुख दुःख दोनों ही भले, वृथा न जाए श्राप।।-5
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी