गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

हर अदावत भूल जाना चाहता हूँ।
प्यार की बस्ती बसाना चाहता हूँ।
इस कदर जो बढ़ रही फ़िरकापरस्ती,
पढ़ क़ुरां गीता सुनाना चाहता हूँ।
हार कैसे मान लूँ मैं जिंदगी से,
दाँव जो हर पल लगाना चाहता हूँ।
जो कभी खाए नहीं भरपेट खाना,
अब उन्हें रोटी दिखाना चाहता हूँ।
है पता मुश्किल बड़ा इंसाफ मिलना,
पर अदालत घूम आना चाहता हूँ।
अश्क का आया समंदर पार करके,
यार खारापन दिखाना चाहता हूँ।
आ रहें हमदर्द बनके पास ‘पूतू’,
पर हकीकत मैं बताना चाहता हूँ।

पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’

पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'

स्नातकोत्तर (हिंदी साहित्य स्वर्ण पदक सहित),यू.जी.सी.नेट (पाँच बार) जन्मतिथि-03/07/1991 विशिष्ट पहचान -शत प्रतिशत विकलांग संप्रति-असिस्टेँट प्रोफेसर (हिंदी विभाग,जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय चित्रकूट,उत्तर प्रदेश) रुचियाँ-लेखन एवं पठन भाषा ज्ञान-हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी,उर्दू। रचनाएँ-अंतर्मन (संयुक्त काव्य संग्रह),समकालीन दोहा कोश में दोहे शामिल,किरनां दा कबीला (पंजाबी संयुक्त काव्य संग्रह),कविता अनवरत-1(संयुक्त काव्य संग्रह),यशधारा(संयुक्त काव्य संग्रह)में रचनाएँ शामिल। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। संपर्क- ग्राम-टीसी,पोस्ट-हसवा,जिला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)-212645 मो.-08604112963 ई.मेल[email protected]

One thought on “ग़ज़ल

  • अर्जुन सिंह नेगी

    पूतू जी बेहद सुन्दर ग़ज़ल , हार्दिक बधाई

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